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________________ 88 हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि भरत ने प्राकृत के जिस भाषा और विभाषा का चित्र खींचा है उस पर टीका करते हुए अभिनव गुप्त पादाचार्य ने कहा है कि संस्कृत के विकृत या अपभ्रष्ट प्राकृत का नाम भाषा है और भाषा यानी प्राकृत की विकृत बोली विभाषा । वस्तुतः यह रुढ़िग्रस्त समीक्षा है। इससे किसी भी प्रकार का भाषा विषयक समाधान नहीं निकाला जा सकता। किन्तु यह निष्कर्ष अवश्यमेव निकाला जा सकता है कि ईसा के तीसरी शताब्दी के लगभग विभाषा का साहित्यिक रूप हमारे सामने नहीं था, यह आँचलिक, क्षेत्रीय बोली के रूप में प्रचलित था जिसे अशिक्षित वनवासी लोग बोला करते थे। भामह छठी शताब्दी का भामह सर्वप्रथम व्यक्ति हुआ है जिसने अपभ्रंश को काव्योपयोगी भाषा और काव्य का एक रूप माना है: शब्दार्थों सहितौ काव्यं गद्यं पद्यं च तद् द्विधा। संस्कृतं प्राकृतं चान्यदपभ्रंश इति त्रिधा।। काव्यालंकार, 1, 16, 28 भामह ने संस्कृत और प्राकृत की तुलना में अपभ्रंश को भी उसी के बराबर गद्य और पद्य का समान अधिकारी बताया है। इस काव्य के लक्षण से यह निश्चित प्राय सा हो जाता है कि इस समय तक अपभ्रंश साहित्य न केवल पद्य में ही समृद्ध हो चुका था अपितु गद्य क्षेत्र में भी अपना महत्वपूर्ण स्थान बना चुका था। अब तक सुसंस्कृत समाज में इसका महत्वपूर्ण स्थान हो चुका था। इसी कारण बलभी (सुराष्ट्र-काठियावाड़) के राजा धारसेन द्वितीय ने अपने पिता के विषय में कहा है कि वे संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश तीनों भाषाओं में प्रबन्ध रचने में निपुण थे। यद्यपि इस दान पत्र में शिलालेख का समय 400 शक सम्वत
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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