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________________ हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि रूप नहीं रहा। इस तरह अर्ध मागधी भाषा में समय के अनुकूल विविध प्रकार की उच्चारण शैली बनती रही। प्राचीन समय में महावीर के समय की अर्धमागधी भाषा में व्यंजन प्रधान उच्चारण बोली थी। आगे चलकर कई प्रकार के तकार प्रधान जो उच्चारण थे बाद में व्यंजन ध्वनियाँ घिस गई। इस प्रकार अर्ध मागधी के कल्पित रूप हो गए। अर्धमागधी की व्याकरणिक कुछ मुख्य विशेषताएँ (1) क्, ग् में परिवर्तित हो जाता है और कभी त् या य में भी परिवर्तित हो जाता है-आकाश-आगास, श्रावक-सावग, लोक-लोग, आराधक-आराहत, अन्तिकात्-अन्तितात् या अन्तियात् । दो स्वरों के बीच में रहने वाले 'ग' की सामान्यतया सुरक्षा की जाती है। किन्तु यह कभी त् या य में बदल जाता है-आगम्-आगम, अतिगं-अतित, सागर-सायर। दो स्वरों के बीच में रहने वाला च् और ज का त् या य हो जाता है। नाराच्-नारात्, वाचणा-वायणा, पूजा-पूया। दो स्वरों के बीच में त् सुरक्षित रहता है और य् में भी बदल जाता है-वन्दते, वन्दति, करतल-करयल । दो स्वरों के बीच में द् सुरक्षित रहता है और कभी त् या य् में भी बदल जाता है-भेद-भेद, यदा-जता, चतुष्पद-चउप्पय । दो स्वरों के बीच में प् को व् हो जाता है-पाप-पाव । कभी य की भी सुरक्षा होती है। कभी त् में बदल जाता है-पिय–पिय, सामायिक-सामातिक। व् की भी सुरक्षा की जाती है। कभी त या य में बदल जाता है-गौरव-गौरव, परिवार-परिताल, परिवर्तन-परियण। निष्कर्ष यह कि दो स्वरों के बीच में क्, ग्, च्, ज्, त्, द्, प, य, व, का सामान्यतया त्, या य, हो जाता है। केवल प् का व् होता है। प्रायः ग्, त्, द्, य और व्, सुरक्षित रहता है; क् का ग् और त् तथा य् भी होता है; महाराष्ट्री प्राकृत में
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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