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________________ हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि कुछ भिन्न रूप से भी इस पर विचार किया जाता है। प्राकृत वैयाकरण मार्कण्डेय ने अर्धमागधी को अलग भाषा बताकर उसका शौरसेनी में समावेश कर दिया है। जैसा कि पहले लिख चुके हैं कि प्राचीन जैन ग्रन्थों के मुताबिक मागधी का आधा रूप जिस भाषा में लिया गया हो उस भाषा में निबद्ध को अर्धमागधी भाषा कहते हैं अथवा देश भाषा में जो लिखा जाए उसे अर्धमागधी भाषा कहते हैं। ऐसी व्याख्या करने से अर्धमागधी का स्वरूप स्पष्ट नहीं हो पाता। यह कहना कि जो मागधी से आधा लिया गया हो यह भाषा का स्पष्ट रूप नहीं बताता। इससे इस भाषा की अपनी स्वतन्त्र सत्ता सिद्ध नहीं हो पाती। दूसरी व्याख्या जो आधा देशी भाषा से लिया गया हो, इससे भी अर्धमागधी भाषा के स्वरूप की कल्पना नहीं हो पाती। ऐसी व्याख्या करने पर कुवलयमाला कहा में वर्णित 18 देशी भाषाओं के मिश्रण को अर्ध मागधी कहेंगे। उन 18 देशी भाषाओं के विषय में कहा जाता है कि भगवान महावीर के निर्वाण के समय जो 18 देश के गण-राजा उपस्थित हुए थे उनमें से नौ राजा काशी के वंशज थे और 9 राजा कौशल देश के लिच्छवी वंश के थे। काशी और कौशल देश की सीमा पर भी 18 देशी भाषाओं का कई प्रकार से सम्बन्ध था। पं० बेचरदास जी का कहना है कि अर्धमागधी भाषा पर एक और . तरीके से विचार कर सकते हैं। उनका कहना है कि प्राचीन समय में जैन शास्त्रकारों का भ्रमण करने का क्षेत्र निश्चित नहीं था। उससे पता चलता है कि जैन श्रमण लोग पूर्व दिशा में अंग देश-मगध तक, दक्षिण में कौशाम्बी नगरी, पश्चिम में स्थूण (स्थानेश्वर-कुरुक्षेत्र) तथा उत्तर में कुणाल देश की सीमा तक भ्रमण करते थे। उस समय में वस्तुतः यही आर्य देश था और इन्हीं की सीमा में लोग भ्रमण करते थे। इस भ्रमण काल में जो देश बताए गए हैं उन्हीं देशों की सीमा के साथ अर्धमागधी भाषा का सम्बन्ध. हो सकता है। अगर यह सम्भावना ठीक हो सके तो आर्य क्षेत्र में जो भाषा प्रचलित थी वही अर्धमागधी भाषा कही जा सकती है।
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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