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________________ प्रकाशकीय . भारतीय संस्कृति की प्राणी-करुणा से ओतप्रोत जीवनधारा की अमल, अमर प्रवाहयात्रा का प्रतिनिधित्व करने वाली श्रमण संस्कृति में साधुमार्ग का विशिष्ट महत्त्व है। साधुमार्गी परम्परा ने गुणपूजा के पवित्र भावों से समाज को प्रभावित करते हुए उत्कृष्ट पथ का दिशा-निर्देश किया है। जीवन-व्यवहारों को आत्मसंयम से निर्देशित कर व्यक्ति, समाज और राष्ट्र की उन्नति हेतु मानव-मात्र को दिशाबोध प्रदान करने वाली श्रमण संस्कृति की प्रतिनिधि धारा साधुमार्ग में ज्योतिर्धर, क्रांतदर्शी और शांतक्रांति के सूत्रधारों आचार्यों की ज्योतित रत्नमालिका में वर्तमान शासन नायक जिन शासन प्रद्योतक, समता दर्शन प्रणेता, धर्मपाल प्रतिबोधक, परमपूज्य आचार्य-प्रवर श्री १००८ श्री नानालाल जी म. सा. अद्भुत प्रतिभा और मेधा के धनी तथा आदर्श संगठन कौशल के साकार रूप हैं। अपनी अनन्य शास्त्रीय निष्ठा और आगमिक ग्रंथों के तलस्पर्शी ज्ञान के साथ ही साथ आचार्य श्री नानेश क्रिया के क्षेत्र में अपने स्वयं के आचरण और अपनी शिष्यमंडली के शुद्धाचार हेतु अहर्निश सजग रहते हैं। शास्त्र के दिशा-निर्देश को अपनी जीवन साधना के बल पर, अपने उज्वल चरित्र और दृढ़ आचार के द्वारा परमपूज्य आचार्य-प्रवर ने जन-जन के समक्ष प्रत्यक्ष किया है। आचार्य श्री नानेश ने अपनी विहार यात्रा में, इस पवित्र भारत भूमि के ग्राम-ग्राम, नगर-नगर, डगर-डगर तक पांव पैदल चलते हुए, इस देश के सभी धर्म, पंथ, जाति के निवासियों को अपने पावन अमृतमय उपदेशों से लाभान्वित किया है। जन-जन के साथ गत ५६ वर्षों से निरन्तर संवाद करते हुए, उनके सुख-दुख में उन्हें धैर्य बंधाते हुए, सहस्त्र-सहस्त्र जनों की अनन्त जिज्ञासाओं का अविचल धैर्य से समाधान करते हुए आचार्य श्री नानेश अपनी मर्यादा के साथ विचरण करते रहे हैं। इस अनथक लोकयात्रा में विचक्षण मेधा और प्रखर प्रतिभा तथा उससे भी बढ़कर मातृममतायुक्त संवेदनशील अंतःकरण से आचार्य-प्रवर ने लोकजीवन का अवलोकन किया और घोर विषमता से त्रस्त पीड़ित मानवता के परित्राण हेतु उनकी अमृतवाणी से 'समता' का सन्देश लोकमंगल हेतु प्रवाहित हो उठा। समता के धरातल पर समाज जीवन को एक आधार-अधिष्ठान मिला और तदनन्तर आचार्य-प्रवर की अन्वेषिणी बुद्धि ने लोकहित के लिए 'आत्मसमीक्षण' के कालजयी सत्य-तथ्य की ओर जन-जन का ध्यान आकर्षित किया। पीड़ित लोक जीवन का भटकाव असह्य था। आत्म शांति की खोज में भटक रहे प्राणियों की दशा देखी नहीं जा रही थी। ध्यान से शांति की संभावना है, मात्र इतना जान कर जन-जीवन ध्यान के पीछे पगलाया-बौराया सा दौड़ चला। ध्यान-साधना के नाम पर अनेकानेक संस्थाएं उभर आईं। ध्यान के शास्त्रीय आधार, ध्यान के मूल स्वरूप से सर्वथा अनजान, अज्ञ जन ध्यान के पुरोधा बन बैठे और जनता उनकी उपासक बन गई। ध्यान साधना के क्षेत्र में एक अंधेरा सा छाने लगा। करुणामूर्ति आचार्य-प्रवर ने अंधियारे में उजियारे की भूमिका निभाई। आगम मर्मज्ञ आचार्यदेव ने शास्त्रवाणी - ‘पण्णा समिक्खए धम्मे' के आधार पर अज्ञान समुद्र के गर्भ से निकालकर 'समीक्षण ध्यान' का 'अमृत कलश' समाज को सेवार्पित कर दिया।
SR No.023020
Book TitleAatm Samikshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNanesh Acharya
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1995
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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