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________________ न सिर्फ वृत्तियों को विषम बनाती है, बल्कि उस व्यक्ति की समस्त प्रवृत्तियों में वह विष घोल देती है और प्रवृत्तियों का वह विष ही सम्पर्क से परिवार, समाज और राष्ट्र में फैल कर जन-जन को विषमता से रंगने लगता है। और ज्यों-ज्यों विषमता फैलती है, उन्मत्तता में, मूर्खता में या कि विवशता में स्वभाव की समता और समरसता कटु बनती रहती है—विभाव का आतंक बढ़ता जाता इसलिये विषमता के विस्तार को रोकने के लिये तथा उसका मूलोच्छेद करने के लिये सबसे पहिले व्यक्ति को अपने विभाव को ही रोकना होगा—विभाव का ही मूलोच्छेद करना होगा। किन्तु इस दिशा में व्यक्ति का पुरुषार्थ तभी जगेगा जब वह विषमता और विभाव के सम्बन्धगत कारणों को भलीभांति समझले। ___ इस संसार में जन्म लेने के बाद सबसे पहिले जो समस्या मनुष्य के सामने खड़ी होती है, वह होती है जीवन निर्वाह की समस्या । इस समस्या का समाधान अनिवार्य होता है—इस से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता। जीवन निर्वाह के साधन और पदार्थ सामान्यतया विपुल नहीं होते या कि सुलभ भी नहीं होते कि सभी लोगों को वे अनायास प्राप्त हो जावें। जीवन निर्वाह के लिये अति आवश्यक पदार्थ भी आयास प्रयास के उपरान्त न मिले तब भी समस्या खड़ी होती है और जिनको वे पदार्थ विपुलता से मिल जाये तथा वे उनको संचित करके अपने अधिकार में दबाये रखें तब भी समस्या खड़ी होती है। समस्या तब नहीं रहती जब समान हार्दिकता से सभी प्राप्त पदार्थों का सभी लोगों में संविभाग होता रहे। तब यदि पदार्थों की अल्पता भी रहती है तो भी समस्या नहीं आयगी क्योंकि संविभाग और समान न्याय से सभी मन से संतुष्ट रहेंगे। पदार्थ अल्प हो और असंविभाग भी रहे तब समस्या जटिलतर हो जाती है। ___ समस्या की जटिलता इस तरह फूटती है कि जब कोई हमदर्दी छोड़कर निर्दयी बनता है, साथियों के आंसुओं को पीकर स्वार्थान्ध हो जाता है तो वह अपने ही लिये येन केन प्रकारेण आवश्यक पदार्थों को जुटाने की कुचेष्टा करता है। कुचेष्टा इसलिये कहा जाय कि वह उपार्जन उसका नीतिमय नहीं होता। अनीति और अन्याय से ही वह अधिक पदार्थ लूटता है और उनका संचय भी करता है। ऐसा संचय पहले से पदार्थों की अल्पता को अधिक भयावह और कष्टदायक बना देता है। जिन्हें आवश्यक पदार्थ नहीं मिलते, उनकी सहन शक्ति जबाब दे देती है, उनका धैर्य छूट जाता है। विभाव की बाढ़ के सामने वे भी अपना स्वभाव भूल जाते हैं। इस प्रकार आचरण में आरंभ होती है हिंसा और हिंसा ही समस्या की जटिलता की जड़ होती है। हिंसा ही रक्षक संस्कारों को भक्षक के रूप में विकृत बनाने लगती है। हिंसा की तरफ झुक जाने से व्यक्ति अपने स्वभाव की और अपनी आत्मा की आवाज की निरन्तर उपेक्षा करने लग जाता है क्योंकि हिंसा उसके हृदय के कोमल भावों को कुचल डालती है। ___ आचरण में हिंसा के फूट पड़ने के बाद जीवन का सारा संतुलन टूट जाता है। फिर हर रास्ता विषमता का रास्ता बन जाता है। यह विस्तृत विषमता का वातावरण कैसा होता है उसका प्रत्यक्ष अनुभव आज शायद सभी को हो रहा होगा। आज पारस्परिक संबंधों की मर्यादाएं टूट रही हैं, पारम्परिक शिष्टाचार मिट रहा है और अपने स्वार्थों को पूरे करने के लिये कोई भी बेरोकटोक आक्रामक और हिंसक बन जाता है। यही कारण है कि अपराध वृत्ति, दंगे और संघर्ष सामान्य बात ४३६
SR No.023020
Book TitleAatm Samikshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNanesh Acharya
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1995
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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