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________________ प्रत्येक द्रव्य के समान मेरी आत्मा में भी आठ पक्ष हैं—नित्य, अनित्य, एक, अनेक, सत्, असत्, वक्तव्य और अवक्तव्य । मेरी आत्मा के चारों गुण और तीन पर्यायें नित्य हैं, मात्र अगुरुलघुत्व पर्याय अनित्य है। यों आत्माएं अनन्त हैं, एक आत्मा में असंख्यात प्रदेश हैं तथा अनन्त गुण और पर्यायें हैं। इस अनैकता के उपरान्त भी सर्व आत्माओं में जीवत्व तथा चेतना लक्षण एक समान होने से सबमें एकत्व भी है। मेरी आत्मा अपने द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा से सत् भी है तो पर द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा से असत् भी है। मेरी आत्मा में अनन्त गुण और अनन्त पर्यायें वचन से कही जाने की अपेक्षा से वक्तव्य भी है तो वचन से नहीं कही जाने की अपेक्षा से अवक्तव्य भी हैं। केवली भगवान् सर्व द्रव्य और पर्यायों को देखते हैं, परन्तु वचन से उनका अनन्तवां भाग ही कह सकते हैं। इस प्रकार वक्तव्य और अवक्तव्य विषय का स्वरूप दिखलाया गया है। नित्यअनित्य पक्ष की चौभंगी के अनुसार मेरी आत्मा में ज्ञान आदि गुण अनादि अनन्त हैं याने वह नित्य है। मोक्ष जाने वाली भव्य आत्मा के कर्म का संयोग अनादि सान्त हैं, क्योंकि कर्म अनादि से लगे हुए हैं परन्तु भव्य आत्मा के मोक्ष में चले जाने पर उन कमों का सम्बन्ध पूर्ण रूप से नष्ट हो जाता है। आत्मा जन्मान्तर करती हुई देवत्व, नारकत्व, मनुष्यत्व और तीर्यंचत्व प्राप्त करती है तो देवत्व आदि उसकी पर्यायें सादि सान्त हैं क्योंकि देव आदि जन्म में उत्पति भी होती है तो उसका अन्त भी होता है। भव्य आत्मा कर्म क्षय करके जब मोक्ष में चली जाती है तो उसका मुक्तत्व रूप पर्याय उत्त्पन्न होने से सादि और उसका कभी भी अन्त नहीं होने से अनन्त अर्थात असादि अनन्त है। द्रव्य, काल, क्षेत्र, भाव की चौभंगी के अनुसार मेरी आत्मा में स्व द्रव्य की अपेक्षा से ज्ञान आदि अनन्त गुण अनादि अनन्त हैं। आत्मा जितने आकाश प्रदेशों में रहती है, वही उसका क्षेत्र है जो सादिसान्त है। आत्मा का काल अगुरुलघु पर्याय से अनादि अनन्त है परन्तु अगुरु लघु की उत्पति और नाश आदि सान्त है। आत्मा का स्वभाव गुण पर्याय अनादि अनन्त है। गुणों की दृष्टि से मेरी आत्मा में छ: सामान्य गुण हैं—(१) अस्तित्व—द्रव्य का सदा सत् अर्थात् विद्यमान रहना अस्तित्व गुण है। इसी गुण के होने से आत्मा में सद्रूपता का व्यवहार होता है। (२) वस्तुत्व-द्रव्य का सामान्य विशेषात्मक स्वरूप वस्तुत्व गुण है। जैसे सुवर्ण घट में घटत्व सामान्य गुण और सुवर्णत्व विशेष गुण है। अवग्रह ज्ञान में सब पदार्थों के सामान्य रूप का आभास होता है और अवाय में विशेष का भी आभास हो जाता है। (३) द्रव्यत्व-गुण और पर्यायों का होना द्रव्यत्व गुण है। (४) प्रमेयत्व—प्रत्यक्ष आदि प्रमाणों का विषय होना प्रमेयत्व गुण है। (५) अगुरुलघुत्व द्रव्य की गुरु अर्थात् भारी या लघु अर्थात् हल्का न होना अगुरुलघुत्व गुण है। यह गुण सूक्ष्म है अतः अनुभव का विषय है। (६) प्रदेशत्व-वस्तु के निरंश अंश को प्रदेश कहते हैं। द्रव्यों का प्रदेश सहित होना प्रदेशत्व गुण है। प्रदेशत्व गुण के कारण द्रव्य का कोई न कोई आकार अवश्य होता है। ये सामान्य गुण सभी द्रव्यों में पाये जाते हैं। द्रव्य रूप से मेरी आत्मा के समान अनन्त आत्माएं हैं उनके भेद इस प्रकार हैं—संज्ञी मनुष्य संख्यात, और उससे असंज्ञी मनुष्य असंख्यात गुण है। उससे नरक के जीव असंख्यात गुणे हैं। इसी प्रकार देवता असंख्यात गुण, तिर्यंच पचेन्द्रिय असंख्यात गुण, चतुरिन्द्रिय जीव असंख्यात गुण, तिइन्द्रिय जीव विशेषाधिक, बेइन्द्रिय जीव विशेशाधिक, प्रत्येक शरीर बादर वनस्पति काय असंख्यात गुण, तेइ काय असंख्यात गुण, पृथ्वीकाय विशेषाधिक, अपकाय विशेषाधिक वायुकायविशेषाधिक और उससे सिद्ध जीव अनन्त गुणे हैं। सिद्धों से निगोद (अनन्त जीवों का ३६३
SR No.023020
Book TitleAatm Samikshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNanesh Acharya
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1995
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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