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________________ प्रस्तावना यह पुस्तक जैन आभ्नगम के सम्मान्य एवं पूजनीय आचार्यदेव श्री नानालालजी महाराज सा. के राणावास प्रवचनों पर आधारित तथा श्री शांतिचन्द्रजी मेहता द्वारा सम्पादित है । 'आत्मसमीक्षण के नव-सूत्र' शीर्षक इस आकलन में जैन दर्शन एवं अध्यात्म साधना के समग्र सूत्र समाहित हैं । जैन परम्परा के प्राचीनतम सूत्र आचारांग के वाक्यों को शीर्ष स्थान पर रखते हुए कालातीत एवं चिरंतन आईतीविद्या का यह अमृत कलश साधकों के लिए एक संजीवनी है जिसमें समता - योग एवं ध्यान की क्रमागत एवं सुगम्य व्याख्या है। आचार्य भगवन की भाषा प्रांजल किन्तु सरल है, उदाहरण सुगम्य एवं दिशादर्शक हैं और अध्यात्म की सर्वोच्च अवस्था के साथ सामाजिक एवं आर्थिक राजनयिक जीवन के भी दिशा-निर्देश हैं। इस आकलन की एक अपूर्व एवं अनुपम विशेषता यह भी है कि यहां किसी अन्य पुरुष को संबोधित करते हुए आध्यात्मिक सत्यों का मात्र बौद्धिक विवेचन नहीं किया गया है अपितु आचारांग की भांति ही प्रथम पुरुष में ही हर अध्याय का प्रारंभ और समापन किया गया है और हर अध्याय अपने पूर्ववर्ती चिंतन से इतना क्रमागत एवं गुंफित है कि यह ग्रंथ आध्यात्मिक चेतना की महायात्रा का एक निर्देशक आकलन बन गया है। पाठक यहाँ प्रथम पुरुष में अपने को रख कर सतत आत्मावलोकन करते हुए समत्व योग के एक-एक सोपान को बुद्धि से परिलक्षित नहीं, अपितु भावना से आत्मसात करते हुए आगे बढ़ सकता है। यह पुस्तक अध्यात्म पथ के पथिकों के लिए एक सक्षम मार्गदर्शक एवं पथ-बंधु बन गयी है। दृष्टव्य यह भी है कि यहाँ किसी प्रकार का साम्प्रदायिक मताग्रह या खंडन-मंडन नहीं है । जैन दर्शन एवं सिद्धांत का कोई भी सूत्र अविवेचित नहीं रहा है, लेकिन दृष्टि मानव चेतना की जड़ जगत के साथ मिथ्या तादात्म्य से ऊर्ध्वारोहण कर अनंत-चेतन स्व-स्वरूप के साथ एकत्व की जय-यात्रा पर रही है जो इस आकलन का उद्देश्य है । अध्यात्म-साधना के पथ पर चलते हुए भी मनीषी प्रवक्ता की दृष्टि वर्तमान विज्ञान की कषायविजड़ित राजनीतिक संकीर्ण स्वार्थों से संचालित तथाकथित प्रगति एवं मानव सभ्यता पर उसके दूषित प्रभाव को स्पर्श करते हुए सामाजिक विषमताओं, अंध-परंपराओं, साम्प्रदायिक मताग्रहों, सामाजिक कुरीतियों का समीक्षण और इनके दुष्प्रभावों से मानव समाज को सावधान करती रही है। इस दृष्टि से भी यह आकलन अमूल्य है। तत्व-दर्शन के जिज्ञासुओं के लिए यहां समस्त गुणस्थानों, संवर-निर्जरा एवं तप के समस्त भेद-प्रभेदों एवं ध्यान योग की समस्त आगम-सम्मत विधियों का विवेचन उपलब्ध है। संक्षेप में यह पुस्तक संप्रदायातीत शुद्ध जैन दर्शन एवं साधना के सूत्रों का संक्षिप्त एवं सुगम सार सत्व है। डॉ. भानीराम वर्मा 'अग्निमुख' कलकत्ता दिनांक २६.५.६५
SR No.023020
Book TitleAatm Samikshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNanesh Acharya
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1995
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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