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________________ में तपश्चरण शारीरिक एवं मानसिक रोगों से भी मुक्ति दिलाता है। जिन आधि-व्याधियों की चिकित्सा करने में चिकित्सक और चिकित्सा प्रणालियाँ विफल हो जाती हैं उन्हें तप की क्रमिक साधना जड़ मूल से दूर कर देती है। अनशन तप के नियमित नियम से व्याधियाँ नहीं आती हैं और शरीर निरोग बना रहता है । मेरे अनुभव में आया है कि तप की प्राभाविकता भी विपुल होती है । तपस्वी के समक्ष शक्तिशाली पशुबल भी हार मान लेता है क्योंकि उसका आत्मबल अजेय बन जाता हैं । तपश्चरण से धर्म की समूची आराधना समन्वित रूप हो जाती है। तप आत्मा को धर्म के सन्निकट ले जाता । संवर के बाद तप से ही कर्म क्षय होते है और निर्जरा के बाद ही मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। तप ऐसी प्रखर अग्नि होती है जिसमें अनिकाचित कर्म तक नष्ट हो जाते हैं। बिना तप के मोक्ष नहीं है और तपश्चरण से शीघ्र मोक्ष मिलता है। अतः मैं तप का आराधन विवेक सहित तथा समभाव पूर्वक करता हूं और यह निश्चय करके कि तपाराधना में कोई लौकिक एषणा नहीं रखूंगा, मात्र कर्म क्षय करने का हेतु ही समक्ष रखूंगा। मेरे तपाराधन में वन्दन - स्तुति का भाव भी नहीं रहेगा तथा तप के मूल तत्त्व धैर्य और समत्व भाव को आत्मसात् करके निश्चल बना रहूंगा। इस प्रकार मेरी आत्मा तप में तपेगी, अपने स्वकरूप में पवित्र बनेगी एवं शक्ति संचय में अग्रगामी होगी । तपोपूत आत्मशक्ति की तभी मुझे प्रत्यक्ष अनुभूति हो सकेगी । सातवां सूत्र और मेरा संकल्प तपोपूत आत्म शक्ति की प्रत्यक्ष अनुभूति से मेरी आत्मा का समग्र स्वरूप उल्लसित हो उठेगा क्योंकि महाप्रतापी और सर्वशक्तिमान बनने का उसका लक्ष्य समीप आता हुआ दिखाई देगा । तब मेरा सोचना भी सार्थक हो जायगा कि कर्म बंधन कैसे टूटते हैं और मुक्ति के मार्ग पर कैसे पहुंचते हैं ? मैं उस स्तर तक पहुंचने के लिये आज अपनी आत्म-शक्ति पर समीक्षण ध्यान करता हूं और आत्म-साक्षात्कार तक पहुंचना चाहता हूं। मैं जानता हूं कि यह महद् कार्य मैं वीतराग देवों की आज्ञा में अपने पुरुषार्थ को नियोजित करके ही सम्पन्न कर सकूंगा । अतः मैं संकल्प लेता हूं कि मैं वीतराग देवों की आज्ञा में ज्ञान और क्रिया का संयोग बनाकर मुक्ति के मार्ग पर अग्रगामी बनूंगा । इसी प्रगति में मैं बारह प्रकार के तपों की कठोर आराधना करूंगा और कर्म बंधनों को तोड़ता हुआ देहमोह से भी मुक्त होने की अवस्था तक पहुंच जाऊंगा। मैं अपने संकल्प में सुदृढ़ रहते हुए अपनी अनन्त आत्मिक शक्ति की अनुभूति लूंगा, उसे लोक कल्याण की दृष्टि से सक्रिय बनाऊंगा तथा महाप्रतापी एवं सर्वशक्तिमान् होने का उपक्रम करूंगा । ३५४
SR No.023020
Book TitleAatm Samikshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNanesh Acharya
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1995
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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