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________________ जिस दिन मैं संसार के समस्त प्राणियों से सम्बन्धित आरंभ एवं समारंभ तथा सभी प्रकार के बाह्य एवं आभ्यन्तर परिग्रह का त्याग करूंगा। (ब) वह दिन मेरे लिये धन्य होगा, जिस दिन मैं द्रव्य से अपने मस्तक तथा भाव से अपने मन को मुंडित बना कर साधु धर्म की दीक्षा अंगीकार करूंगा। एवं (स) वह दिन मेरे लिये धन्य होगा जिस दिन मैं अठारह पाप तथा चारों आहार का त्याग करके आत्मालोचना एवं संलेखना सहित पंडित मरण को प्राप्त करूंगा। मनोरथ चिन्तन की निरन्तरता से आत्म भाव की पुष्टि होती रहेगी और इस रूप में यह पावन कार्य तप रूप ही होगा। (२) प्रतिदिन इसी प्रकार चौदह नियमों का भी चिन्तवन किया जाय जिससे त्याग की वैचारिक पृष्ठभूमि का निर्माण होता चले। तथा सामान्य त्याग का अभ्यास भी बनता चले । चौदह नियम इस प्रकार हैं—(अ) सचित (आ) द्रव्य (इ) विगय (ई) उपानह (पगरखी वगैरा) (उ) ताम्बूल-पान (ऊ) वस्त्र (ए) पुष्प (ऐ) वाहन (ओ) शय्या (मलमूत्र स्थान सहित) (औ)लेपन (अं) ब्रह्मचर्य (अः) सान (ऋ) दिशा तथा (ऋ) भोजन में प्रतिदिन कुछ न कुछ यथाशक्ति मर्यादा ली जाय तथा प्रतिदिन अधिकतर त्याग की भावना रखी जाय। (३) मृत्यु अवश्यंभावी है लेकिन कब होगी—यह अज्ञात है अतः बिना त्याग प्रत्याख्यान के अकस्मात् मृत्यु हो जाय तो आत्म संशोधन नहीं होगा —इस भावना से प्रतिदिन रात्रि को सोते समय आश्रव क्रियाओं का त्याग करके सागारी संथारा कर लेना चाहिये जिसकी अवधि दूसरे दिन प्रातः उठने तक के समय की होगी। सुविधा के लिये यह पाठ उच्चारित कर लिया जाय –'आहार, शरीर, उपधि, पचखू पाप अठार । मरण पाऊं तो वोसिरे, जीऊं जागूं तो आगार ।' ऐसा ही तपोपाय दिन भर आहार क्रिया से बचने के सम्बन्ध में भी किया जा सकता है। प्रति समय खाया तो जाता नहीं है किन्तु उसका त्याग भी नहीं होता है अतः एक अंगुली में अंगूठी पहिन कर व्रत ले लिया जाय कि जब भी खाना होगा अंगठी उतार कर व महामंत्र पढ़कर खाऊंगा, वरना अंगूठी पहने-पहने भोजन का त्याग रहेगा। इससे भी तपश्चरण की भावना पुष्ट होगी तथा अनावश्यक क्रिया रूप पाप बंध से बचा जा सकेगा। (४) प्रति दिन अथवा दिन रात में शुभ समय मिलने पर वन्दना करने का नियम लिया जाय। यह वन्दना सुदेव व सुगुरु के प्रति भक्ति दर्शाने वाली हो तथा उनके गुणों का स्मरण कराने वाली हो। ऐसे भक्ति सहित वन्दन नमन से आन्तरिकता में रही हुई कषाय वृत्तियाँ मन्द होगी तो नमने से कर्मों की निर्जरा भी होगी। (५) अनशन तप की सीमा एक नवकारसी या पहरसी से लेकर छः माह तक की होती है। कम से कम शक्ति वाला व्यक्ति भी नवकारसी (रात्रि बारह बजे से सूर्योदय के बाद ४८ मिनिट तक कुछ भी नहीं खाना पीना) तथा पहरसी (एक पहर तक कुछ भी नहीं खाना पीना) की तपस्या कर सकता है। कठिनाई मामूली है लेकिन फल ऊंचा माना गया है। कहते हैं एक नवकारसी करने से सौ वर्ष नरक में जितने दुःख भोगे उतने अशुभ कर्मों का क्षय होता है और एक पहरसी से हजार वर्ष नरक में जितने दुःख भोगे उतने अशुभ कर्मों का क्षय होता है। एकासना तप का इससे भी अधिक फल मिलता है। तपोपूत आत्म-शक्ति जैसे तपस्या का अ आ इ ई होता है, वैसे उसका डि.लिट भी होता है तपाराधना के रूप में तथा उसमें भी सर्वोच्य आभ्यान्तर तपों की साधना में। इन तपों का आचरण करते हुए कर्मों का ३५२
SR No.023020
Book TitleAatm Samikshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNanesh Acharya
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1995
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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