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________________ तपों का यह क्रम एक दूसरे से उच्चतरता का आपेक्षिक क्रम है –बाह्य भेद में भी और आभ्यन्तर भेद में भी। अनशन सम्पूर्ण आहार त्याग होता है और ऊनोदरी में अल्प या मित आहार लिया जाता है तब भी ऊनोदरी तप अनशन की तुलना में उच्चतर माना जाता है क्योंकि कुछ न खाने की अपेक्षा भूख से कम खाने की कठोरता अधिक होती है। इसी प्रकार उच्चतरता का क्रम आगे से आगे होता है। भूख से कम खाने की अपेक्षा मान मोड़कर भिक्षा मांग कर लाना और खाना अधिक कठिन होता है जबकि उससे भी अधिक कठिन सारे रस छोड़कर शुष्क (सूखा) खाना खाना। इसी प्रकार आभ्यन्तर तप-क्रम में भी प्रायश्चित सबसे कम कठोर माना गया है जो अपने अकृत्य के प्रति खेद का अनुभव कराता है। उससे उच्चतर होता है विनय-अपनी सम्पूर्ण वृत्तियों में से अभिमान को निकाल फेंकना और नम्रता की प्रतिमूर्ति बन जाना। इसके बाद क्रमशः वैयावृत्य, स्वाध्याय, ध्यान के तप आते हैं सर्वोच्च तप है व्युत्सर्ग, जिसका अर्थ होता है सांसारिकता के सम्पूर्ण मोह का सर्वथा त्याग । इसमें शरीर तक का त्याग सम्मिलित होता है। मैं तपश्चरण के इस क्रम को अनूठा मानता हूँ क्योंकि कई मान्यताओं का तप तो तक ही सिमट कर रह जाता है जबकि वीतराग देवों ने अनशन को मात्र प्राथमिक तप माना है और वह भी बाह्य-शरीर से सम्बन्धित । बाह्य एवं आभ्यन्तर प्रकारों में यही अन्तर है कि बाह्य तप देह शुद्धि से प्रारंभ होते हैं तथा आत्म शुद्धि का धरातल तैयार करते हैं तथा आभ्यन्तर तप आत्म शुद्धि से प्रारंभ होकर उसकी परम शुद्धि तक पहुँचते हैं तथा उनका प्रभाव शरीर में तेज एवं ओज के रूप में प्रकट होता है। मैं साधना के इस श्रेष्ठ अंग–तपश्चरण पर जितना अधिक चिन्तन करता हूँ, उतनी ही गूढ़ता मेरे मन में गहराती जाती है जैसे कि उस गूढ़ता का कहीं ओर-छोर ही न हो। इस कारण मैं जरूरी समझता हूँ कि तप के एक-एक प्रकार पर विस्तृत रूप से सोचूं तथा उनके आत्मप्रेरित आचरण में निष्ठा का संचय करूं। यह विस्तृत विश्लेषण मेरे विचार को स्पष्टता देगा तो मेरे आचार को भी परिपुष्ट बनायगा, ताकि मैं अपनी आत्म विकास की इस महायात्रा में त्वरित गति से आगे बढ़ सकू। आहार-त्याग रूप अनशन मैं मानता हूँ कि शरीर और आत्मा को तपाना ही तप है। जैसे अग्नि में तपा हुआ सोना पूर्ण निर्मल होकर शुद्ध होता है, उसी प्रकार तप रूपी अग्नि में तपी हुई देह और आत्मा मल से रहित होकर शुद्ध-स्वरूप हो जाती है। तपश्चरण के इस क्रम में पहला है अनशन तप। आहार का त्याग करना अनशन तप है। इसके दो भेद कहे गये हैं—(१) इत्वर–एक दिन के उपवास से लेकर छः मास तक का अनशन तप इत्वर अनशन है। (२) यावत्कथित भक्त परिज्ञा, इंगित मरण और पादोपगमन मरण रूप अनशन यावत्कथित अनशन है। इसे मरण-काल अनशन कह सकते हैं। इत्वरिक अनशन में भोजन की आकांक्षा रहती है, इसलिये इसे साकांक्ष अनशन भी कहते हैं, जबकि मरण काल अनशन (संथारा) जीवन पर्यन्त के लिये होता है। उसमें भोजन की कतई आकांक्षा नहीं रहती, इस कारण वह निःकांक्ष अनशन भी कहलाता है। इत्वरिक अनशन छः प्रकार का कहा गया है :-(१) श्रेणी तप–श्रेणी का अर्थ होता है क्रम या पंक्ति। उपवास, बेला, तेला आदि क्रम से किया जाने वाला तप श्रेणी तप है जो क्रमिक रूप से ३२२
SR No.023020
Book TitleAatm Samikshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNanesh Acharya
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1995
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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