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________________ नाम कर्म भी सम्मिलित हैं जिसे बांधने के ये कारण हो सकते हैं—(१) अरिहंत, (२) सिद्ध, (३) प्रवचन, (४) गुरु, (५) स्थविर, (६) बहुश्रुत और (७) तपस्वी में भक्ति भाव रखना, इनके गुणों का कीर्तन करना तथा इनकी सेवा करना (८) निरन्तर ज्ञान में उपयोग रखना, (६) निरतिचार सम्यक्त्व धारण करना, (१०) निर्दोष रूप से ज्ञान आदि विनय का सेवन करना, (११) निर्दोष आवश्यक क्रिया करना, (१२) मूल गुणों व उत्तर गुणों में अतिचार नहीं लगाना, (१३) सदा-संवेग भाव और शुभ ध्यान में लगे रहना। (१४) तप करना (१५) सुपात्रदान देना (१६) दस प्रकार की वैयावृत्य करना (१७) गुरु आदि की समाधि हो वैसा काम करना (१८) नवीन ज्ञान सीखना (१६) श्रुत का बहुमान करना तथा (२०) प्रवचन की प्रभावना करना। ____ अशुभ नाम कर्म इन कारणों से बंधता है—(१) काया की वक्रता (२) भाषा की वक्रता (३) मन की वक्रता तथा (४) विसंवादन योग। शुभ नाम कर्म का चौदह प्रकार का अनुभाव होता है—(१) इष्ट शब्द (२) इष्ट रूप (३) इष्ट गंध (४) इष्ट रस (५) इष्ट स्पर्श (६) इष्ट गति (७) इष्ट स्थिति (८) इष्ट लावण्य (६) इष्ट यशःकीर्ति (१०) इष्ट उत्थान बलवीर्य पुरुषाकार पराक्रम (११) इष्ट स्वरता (१२) कान्त स्वरता (१३) प्रिय स्वरता तथा (१४) मनोज्ञ स्वरता। अशुभ नाम कर्म के अनुभाव भी चौदह प्रकार के हैं किन्तु इनसे विपरीत होते हैं। दोनों प्रकार के नाम कर्म का अनुभाव स्वतः भी होता है तथा परतः भी होता है। ___ गौत्र की नीचोच्चता मैं ऊंचा हूं या नीचा हूं यह भेदस्थिति गौत्र कर्म के प्रभाव से होता है। इस कर्म के उदय से जीव ऊंच-नीच शब्दों से सम्बोधित किया जाता है तथा जाति, कुल आदि की अपेक्षा छोटा बड़ा कहा जाता है, गौत्र कर्म को एक कुंभकार के समान कहा गया है। जैसे कुम्हार कई घड़ों को इस तरह बनाता है कि लोग उनकी प्रशंसा करते हैं तथा कलश मान कर अक्षत चन्दन से पूजा करते हैं। किन्तु वह कई घड़े ऐसे भी बनाता है जिनमें मदिरा आदि भरी जाने के कारण वे निंध होते हैं। ऊंच-नीच के भेद इसी कुंभकार की तरह गौत्र कर्म बनाता है। उच्च गौत्र के उदय से जीव धन, रूप आदि से हीन होता हुआ भी ऊंचा माना जाता है और नीच गौत्र के उदय से धन, रूप आदि से सम्पन्न होते हुए भी वह नीच ही माना जाता है। जीव उच्च गौत्र कर्म का बंध आठ प्रकार के मद (अभिमान) नहीं करने से करता है जो इस तरह हैं-(१) जाति का मद. (२) कल का मद, (३) बल का मद (४) रूप का मद, (५) तप का मद, (६) श्रुत का मद, (७) लाभ का मद और (८) ऐश्वर्य का मद । इसके विपरीत जो इन आठों स्थितियों का अभिमान करने वाला होता है, वह नीच गौत्र कर्म का बंध करता है। उच्च या नीच गौत्र कार्मण शरीर नाम कर्म के उदय से भी उच्च या नीच गौत्र का बंध होता है। उच्च गौत्र का अनुभाव आठ प्रकार से होता है—(१) जाति विशिष्टता (२) कुल विशिष्टता (३) बल विशिष्टता (४) रूप विशिष्टता (५) तप विशिष्टता (६) श्रुत विशिष्टता (७) लाभ विशिष्टता और (८) ऐश्वर्य विशिष्टता। यह अनुभाव स्वतः भी होता है तथा परतः भी। एक या अनेक बाह्य द्रव्य आदि रूप पुद्गलों का निमित्त पाकर जीव उच्च गौत्र कर्म भोगता है। राजा आदि विशिष्ट पुरुषों द्वारा अपनाये जाने से नीच जाति और कुल में उत्पन्न हुआ पुरुष भी जाति—कुल सम्पन्न की तरह २००
SR No.023020
Book TitleAatm Samikshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNanesh Acharya
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1995
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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