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________________ कारण हैं। ये ही आत्मा की परमात्मिकता में व्यवधान डालने वाले भी हैं - पाँच चोर गढ़ मंझा, गढ़ लूट दिवस अरु संझा । जो गढ़पति मुहकम होई, तो लूटि न सकै कोई ।। और आचार्य नानेश ऐसे मुहकम गढ़पति सिद्ध हुए जो रमैया की दुल्हन को बाजार लूटने का कोई अवसर ही लेने नहीं दे सकता था। ऐसे गढ़पति की महिमा का बखान करते हुए संत कबीर ने पहले ही कह दिया था ऐसा अद्भुत मेरा गुरु कथ्या, मैं रह्या उमेषै । मूसा हस्ती सों लडै, कोई बिरला पेषै । मूसा बैठा बांबि में, लारे साँपणि धाई, उलटि मूसै सांपिण गिली यह अचरज भाई। नाव में नदिया डूबी जाई । आकाश के औंधे कुएं से पाताल की पनिहारन जो जल भरती है उसे कोई बिरला हंस ही पीता है। यह उलटबांसी नहीं, सत्य है, तत्त्व है, सार है, यही वह ज्ञान है जिसके आलोक में यह चराचर जगत् किसी रूप में अर्थवान बनता है। एक नन्हें दीपक से विकीर्ण यह प्रकाश विगत लगभग अर्द्धशती में विस्तार पाता, प्रचण्डतर होता अब अपनी दीप्ति के कारण जाज्वल्यमान सूर्य का पर्याय बन गया है। अब कहीं अंधकार नहीं बचा है, कोना-कोना आलोकित है। बस आवश्यकता है उस आलोक को आत्मसात कर पाने की, जिसका मार्ग भी स्पष्ट कर दिया गया है। इस प्रकार अपने सहज समत्व ज्ञान से, दीपित कर धरती का आंगन। कुटिया का वह नन्हा दीपक, एक नया आदित्य गया बन।। _डॉ. आदर्श सक्सेना बी-१७, शास्त्रीनगर, बीकानेर ३३४००३
SR No.023020
Book TitleAatm Samikshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNanesh Acharya
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1995
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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