SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 52
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ खरतरादिक दश मत कहे छे । तथा खरतरयाने कुमती मुख चपेटा ग्रंथ रच्या । तिनोने खरतरा गछ थाप्या हे । वीजे मत कहे हैं । इस मत कदाग्रे में अल्पसूत्री आत्मार्थी पिण पड जावे तो कुछ अटकाव नथी । परंतु जब उसको शास्त्र बोध होय जावेहें तब आपणे दुःकरम निंदेहें । फेर कीसेकी नाम लेंकें निंद्या नथी करता । जिसा पदारथ होवे तिसा राग द्वेष न करे । परंतु मिथ्यात अव्रत प्रमाद कषाय खोटा मन वचन काया का जोग तथा हिंसा जूठा अदत्त मैथुन परीग्रह तथा पांच इंद्रीकी विषे तथा क्रोध मान माया लोभ इत्यादिक खोटे कर्मी की निंद्या करी तो 'खोटके करनेवाला आपेही निंद्या गया । इसमें कया संदेह हे ? ___सो उपाध्यायजी को जब सिद्धांत का बोध थया तब ग्रंथ रचे । तिहांतो कीसे की नाम लेके निंद्यां करी नथी । ग्रंथा विषे तो तत्त्व धर्म कह्या हे । पखंडको निषेद्या हे । शुद्ध जिनधर्म की थापना करी हे । इस वाते मेरे को तो उपाध्यायजी परम्र उपकारी पुरुष दीसे हें । परंतु मेरे को प्रत्यक्ष ज्ञान नथी । उपाध्यायजी के ग्रंथा की रचना देख के मेरे को परम उपकारी उत्तम पुरुष दीसे हे । तत्त्व तो केवलज्ञानी जाणे । मेरे को महाराजजी इस भवमें मीले नथी । परभव का सबंध तो ज्ञानी मीलसे तब पुछसुं । श्री उपाध्यायजीने सौ ग्रंथ बनाया है । इसो लोकाको पासों मेने सुणाहे । तिना ग्रंथा विचो मेने अध्यात्मसार । १ द्रव्यगुणपर्यायका रास । २ ज्ञानसार । ३ देवतत्त्वनिर्णा गुरुतत्त्वनिर्णा धर्मतत्त्वनिर्णया । ४ साडातिनसे गाथा का स्तवन । ५ देढसे गाथा का स्तवन । ६ सवासौ गाथा का स्तवन । ७ चोवीसी । ८ वीसी । ९ समाधीतंत्र । १० अठारापापस्थान की सज्झाय इत्यादिक ग्रंथ बणाय हे । तिना विचो मेने तो पांच दस ग्रंथ हरनारायण पंडित पासो वांचे छ । वांच कर मेने तथा हरनारायणने विचारया । ए ज्ञान नय निक्षेपा स्याद्वाद निश्चे व्यवहार सप्तभंग आठ पख सोलां वचन बीयाली भाषा व्याकरण इत्यादिक सामग्री अरु जीवको सुध परुपक पुरुषका संयोग मीलणा दोहिला छे । तथा मिले तो सुणना दुर्लभ छे । सुणे तो समजणा दुर्लभ छे । तथा सरधा आवणी दुर्लभ छ । तथा पालणा दुर्लभ छे । क्या करें ? जीवाकों अनादि कालका मिथ्यात्व १ बूरा । मोहपत्ती चर्चा * २३
SR No.023016
Book TitleMuhpatti Charcha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasenvijay, Kulchandrasuri, Nipunchandravijay
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages206
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy