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________________ पास मुंडत थया हे । तिसकी किंचित मात्र कथा कहे छे । एक लोकाइ थी उसका एक बेटा था । तिस बाइ के इसो नेम था । भक्तामर सुणके अन्न पाणी खाणेका निम था । इस खेत्रमें चोमासा- नयविजेजीका था । ते तपागछका यति था । उसके पास नित भक्तामर सुणणेकुं आवती थी । बेटा पण साथ आवता था । बेटे के सुणते सुणते को भक्तामर कंठ हो गया । एक दिन मेघ वरसणे लागा । दूपहर होइ गया । पण मेघ वरसता रहे नही । बालक बोल्या-माजी ! तुमने आहार नही कीया ? तब मा बोली- हे ! पुत्र ! में भक्तामर सुणे बीना आहार नही करना । मेघ वरसता रहेगा तब मे उपासरे जाइने भक्तामर सुणके आहार करांगी । तब पुत्र बोल्या-माताजी ! भक्तामर तो में आपको सुणाय देताहां । तब माता बोली-सुणाय दे । तब पुत्रने भक्तामर सुणाय दीया । तब माताने भक्तामर सुणके आहार कर लीया । दूजे दिन उपासरे गइ । तब यति बोल्या-बाइ कलतो सारा दीन मेघ वरस्या छे । तुमने आहार नही करया होवेगा ? तब बाइ बोली-पूज्यजी ! मेरे बेटे ने भक्तामर मेरे को सुणाय दीया । फेर यतिने लोको को कह्या-इस छोरे कों लेवो । बडा प्रभाविक होवेगा । लोकाने उनकी माता को समजाकर देवराव दीया । इत्यादिक घणी बात छे । जब उसको सूत्र बोध नही था तब तिनोने बाल अवस्था में मतीया की वाता सुण के किसेकी निंद्या करी होवेगी तथा कोइ पन्ने में नाम लेके निंद्या करी होवेंगी तो ज्ञानी जाणे मेरे को इस बात की कुछ खबर नथी । तथा कोइक इम बी कहेते हैं- उपाध्यायजीने दस मतकी चर्चा नथी करी । ए चर्चा तो धर्मसागर उपाध्यायने करी हे । संवत १६१७. सतरा के साल पाटण मध्ये जिनचंद्रसूरी संघाते वाद थया तिवारे धर्मसागर उपाध्याय प्रवचन परीक्षा ग्रंथ प्राकृतपाठ तथा संस्कृत टीका करी छे । ते पिण प्राकृत संस्कृतमां प्रविण दीसे छे । आसरे १२००० ग्रंथ छे । __ तथा श्री भट्टारक श्रीविबुधविमलसूरीए समकीत परिक्षा ग्रंथ बणाया छ । ते पिण सुमती तरकादिक शास्त्राकार जाणकार सुण्या छे । ते ग्रंथ १२७१० पाठ तथा अर्थ छे । तथा कुमती कुदाल ग्रंथ का पाठ तथा अर्थ १४००० छे । तिनो ग्रंथा विषे तप्पा तो गछ लिख्या छे । १ दीक्षित । मोहपत्ती चर्चा * २२
SR No.023016
Book TitleMuhpatti Charcha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasenvijay, Kulchandrasuri, Nipunchandravijay
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages206
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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