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________________ करिज्ज पट्टं व पडलं वा ८१ पुब्बुदिट्टे ट्ठाणे पायं चउरंगुलंतरं काउं मुहपोत्ती उज्जुहथ्थे वामंमि य पादपुंछणयं ८२ ॥ ओघनिर्युक्ति भाष्य गाथा २६६ तथा ओ. नि. गाथा ५१३ । आवश्यक अवचूरी मध्ये मुखवस्त्र हाथ मध्ये ह्या छे । भाष्य मध्ये मुखवस्त्र हाथ मध्ये कह्या छे । सूत्र मध्ये मुखवस्त्र हाथ मध्ये का छे । आवश्यक नियुक्ति मध्ये मुखवस्त्र हाथ मध्ये कह्या छे । टीका ओघनियुक्ति की टीका श्री गंधस्ती आचार्यजीनी कीधी ते मध्ये मुखवस्त्र हाथ मध्ये कह्या छे । ते प्रमाण करो । तथा मुखपत्ती बांध के कथा करे छे तथा एकेक सदा मुख को बांधे छे ते कोणसा सूत्र विचो ए समाचारी काढी छे ? ते बतावो | तेह अछी बात छे । हम बी प्रमाण कर लेवांगे । जेकर किसे सिद्धांत मध्ये नही कह्या तो तुमारी मत कल्पना छे । तुमारी इच्छा । जो कोइ मतकदाग्रही नही होवेगा सो इस बात को प्रमाण नही करेगा । इस मुख बांधणे मध्ये गुण एक नथी पिण अवगुण अनेक छे । हे भव्य जीवो ! तुम बुझो । श्रीमहानिशीथ सूत्र मध्ये कह्या छे- स्वलिंगते उज्झाय के अन्नलिंग धारन करेगे । तब कोइक भोला जीव इम बोल्या- हमने कुछ अपनी बात नथी करी प्रभुजीने कहया छे साधु अन्यलिंग धारण कर लेवेगे तिस वास्ते हमे अंगीकार कीया छे । हे आर्य ! एह तो तुमने अछी बात कही तेतो मैने सुनी परंतु एहवी तुमारी सरधा होवेगी । प्रभुने कह्या छे गुरु का शिश्य अविनीत होवेगा तथा गुरु शिष्य को सम सूत्र नही पढावेगे तथा साधु आरंभी परीग्रही होवेगे मत मतांतर घणे होवेगे इत्यादिक घणी पांचमें काल की विटंबणा कही छे । परंतु प्रभुजीने तो इस वास्ते कह्या छे-कोइ भव्य जीव विपरीत समाचारी तथा सरद्धा जाणीने मेरी आज्ञा अंगीकार करेगे ते संसार समुद्र तरेगे । जेता काल जीव की भवथीती परिषाक न होइ तिहाताइ जीवको धर्म संबंधी वीर्यउलास नही जागता । जिस जीवने जीस गति को जाणा छे तिसको तैसाइ पराक्रम जागता छे । इस मध्ये संदेह नथी । अभव्य को तथा दुर्भवी को केवली भाषे धर्म की खबर नही होती । जैसी कुल ४२ * मोहपत्ती चर्चा
SR No.023016
Book TitleMuhpatti Charcha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasenvijay, Kulchandrasuri, Nipunchandravijay
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages206
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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