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________________ ( ४१ ) आवश्यक है, परन्तु सम्यगज्ञानी के लिये भक्ष्य अभक्ष्य का कोई विचार नहीं है । उसको संवेदन तो यही होता है, मैं ही अन्न हूँ। निष्कर्ष . ... ___ऊपर हमने कुछ उपनिषदों के अवतरण दिये हैं। उन सभी से यही सिद्ध होता है कि मनुष्य का जन्म से मरण पर्यन्त का भोज्य पदार्थ अन्न ही था। तैत्तरीयोपनिषद् में जो सृष्टि की उत्पत्ति का क्रम दिया है, उसमें यह स्पष्ट लिखा है पृथिवी से औषधियाँ उत्पन्न हुई, औषधियों से अन्न, और अन्न से पुरुष उत्पन्न हुआ, इसीलिये यह पुरुष अन्न-रसमय है। इसी उपनिषद् में अन्नं को सर्वोषध और प्राणियों के जीवन की वृद्धि करने वाला कहां हैं। प्राणियों के लिए सबसे बड़े कर पदार्थ अन्न माना है। .. छान्दोग्योपनिषद् में अन्न को तेजस और ब्रह्मवर्चसका कारण मान कर उस की उत्पत्ति के साधनों की परम्परा जुटाने के लिये प्रार्थना की गयी है। __वृहदारण्योपनिषद् में ईश्वर द्वारा सात धान्यों की उत्पत्ति और उनके विभाजन की चर्चा की गयी है । लिखा है पिता ने सीतें धान्यों का सर्जन करके एक सर्वसाधारण के लिये रक्खें, और एक पशुओं को दिया, पशुओं को दिये गये अन्न से घृत दुग्ध आदि की उत्पत्ति हुई और वे मनुष्यादि सर्प का भोज्य बने । इसी कारण तत्कालजात बच्चे को घृतं चटाया जाता है, और दूध पिलाया जाता है।
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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