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________________ ( १७ ) ३३, मेघ लक्षण ३४, चक्र लक्षण या ३८ मलि - ३७, सि : वृषभ लक्षण ३२, र्कट लक्ष ३५, छत्रलक्षण ३६, दसड लक्ष अक्षरा ३६, काकी लक्षण ४०, चर्म लक्षण ४१, चन्द्र लक्षण ४२ सूर्यचार ४३, राहु चार ४४, महचार ४४, सौभाग्यकर ४६, बौर्भाग्यकर ४०, विद्याकर ४८, मन्त्रगत ४६, रहस्यगत ५०, सभाष्य ५१, चार ५२, प्रतिचार ५३, व्यूह ५४, प्रतिव्यूह ५५, स्कंधावारमान ५६, नगरमान ५७, वस्तुमान, ५८, स्कंधावार निवास ५६, वास्तुनिवेश ६०, नगरनिबेश ६१, अश्वरथ ६२, त्सरुप्रताप ६३, श्रव शिक्षा ६४, हस्ति शिक्षा, धनुर्वेद ६६, हिरराव सुर्वण मलि धातुपाक ६७, वाहुदण्ड-मुष्टि यष्टि युद्ध, युद्ध, नियुद्ध युद्धादि युद्ध, सूत्र कोड़ा, धर्म क्रीड़ा, चर्मकीड़ा ६६, पत्रच्छेय, कडब्य ७०, सजीव ७१, शकुन शब्द ७३ । कल्प वृक्षों की अल्पता के समय में उन मनुष्यों के भोज्यपदार्थ जब तक उपयुक्त दशविध वृक्ष प्रचुर परिमाण में होते हैं, तब तक कर्म भूमिक मनुष्य आनन्द से अपना जीवन व्यतीत करते हैं, परन्तु परिवर्तन काल वाले क्षेत्रों में ज्यों-ज्यों समय तता जाता है, स्पोंस्वो बसें वृद्ध लुप्त होते जाते हैं। परिणाम स्वरूप मनुष्य अपने सामनों के लिए इधर-उधर घूमते हैं और अन्य परिमित वृक्षों पर करते हैं, और उनमें वृत्तियां बढ़नी जाती है। वे अपने पराक्रम करने वालों की पार करते हैं कुल कर अपनी नीति के अनुसार सिन्हा भरता है। ऐसी परिस्थिति
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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