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________________ ( ११ ) सर्पिणी समा के प्रारम्भ में मनुष्य का आहार विद्या व्यवहार धार्मिक आचारों से “་ अवसर्पिणी तथा उत्सर्पिर्णी के आद्यन्त अरकों में मनुष्य हीन होंगे, फिर भी उनमें क्रोध मान कपट लोभ आदि दुर्गा बहुत कम होंगे, भद्रपरिणामी और अनुशासन को मानने वाले होंगे। उनमें जो विशेष समझदार और संस्कारी मनुष्य होगा, वह उनको अनुशासन में रक्खेगा, उनके लिए नीति नियम बनायग्रा और वे उन नीति-नियमों का पालन करेंगे । जैन परिभाषा में नीतिनियमों को बनाने वाले उस विशिष्ट पुरुष को कुलकर नाम से निर्दिष्ट किया है। वैदिक ऋषि कुलकर को मनुनाम से सम्बोधित करते हैं । विद्या-व्यवहार शून्य प्राचीन मनुष्य प्राणी कुलकरों अथवा मनुओं द्वारा अनुशासित, शिक्षित होने के कारण वे मनुष्य कहलायेंगे । मनुष्य के आहार के विषय में सूत्र कृताङ्ग के आहार - परिज्ञानाध्ययन में नीचे लिखे अनुसार उल्लेख मिलता है । डहरा समाणा कखीरं, सप्पिं प्रणु पुव्वेणं । बुड्ढा श्रयणं तसथावरे पाणे, २ ते जीवा आहारेति ॥ १. वर्तमान काल में भी बच्चे को जन्मते ही दुध तथा सर्पिष् फाय में लेकर बच्चे के मुह में डाला जाता है इस से सिद्ध होता है मनुष्य का मुख्य भोज्य पदार्थ दुग्ध घृत है, परन्तु ए पदार्थ जीवन पर्यन्त सभी के लिये प्रत्यक्ष नहीं, अतः बड़ा होने पर उसको अन्न खाना सिखाया जाता है । २. यह सूत्र केवल करता, आर्य अनार्य सभ्य मलिक मनुष्यों के लिए आहार का विधान नहीं असभ्य प्रादि सम्पूर्ण मानव जाति के प्राहार
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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