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________________ से अधिक न होगी। उनका जल मच्छकच्छपादि जलचर जीवों से व्याप्त होगा। जब सूर्योदय और सूर्यास्त का समय होगा, ये मनुष्य अपने-अपने बिलों से निकलकर नदियों में से मत्स्यादि जीवों को स्थल में ले जायेंगे, और धूप में पके-भुने उन जलचरों का आहार करेंगे। दुष्षम-दुष्षमा के भारतीय मानवों की जीवनचर्या इक्कीस. हजार वर्षों तक इसी प्रकार चलती रहेगी। . गौतम-भगवन् ! वे निश्शील, निर्गुण, निर्मर्याद, त्यागव्रतहीन, बहुधा मांसाहारी और मत्स्याहारी मर कर कहाँ जायेंगे ? कहाँ उत्पन्न होंगे ? महावीर-गौतम ! वे बहुधा नारक और तिर्यञ्चयोनियों में उत्पन्न होंगे। अवसर्पिणी काल के दुष्पम दुष्षमारक के बाद उत्सर्पिणी का इसीनाम का प्रथम पारा लगेगा, और इक्कीस हजार वर्ष तक भारत की वही दशा रहेगी जो छठे बारे में थी। .. ... उत्सर्पिणी का प्रथम पारा समाप्त होकर दूसरा लगेगा, सब फिर शुभ समय का प्रारम्भ होगा। पहले पुष्कर संवर्तक नाम का मेघ बरसेगा जिससे भूमि का ताप दूर होगा। फिर क्षीर मेघ बरसेगा, जिससे धान्य की उत्पत्ति होगी। तीसरा घृत मेघ - बरस कर पदार्थो में चिकनाहट उत्पन्न करेगा। चौथा अमृत मेघ बरसेगा तब नाना प्रकार के रस वीर्यकाली औषधियां उत्पन्न होंगी और अन्त में रस-मेघ बरस कर प्रथिवी आदि में रस की उत्पत्ति करेगा। ये पांचों ही मेघ सात सात दिन तक निरन्तर
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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