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________________ ( ५०.३ ) 1 दन्तधावन, कपित्थ, खाद्य पुष्पों का उपयोग करते हैं, और पर्याप्त भिक्षा मिल जाने पर भी आम, श्रमले आदि महण करते हैं । नेकतिका वञ्चनिका, कूटसक्खी अवादुका / बहूहि परिकप्पेहि, श्रमिसं परि भुंजिरे ॥६४० ॥ लेस कप्पे परियाये, परिकप्पेनुधाविता । जिविकत्था उपायेन, संकट्ठेति बहुं धनं ।। ६४१ || अर्थः- कपटी, ठगारे कूटसाक्षी देने वाले अल्पभाषक अनेक उपायों से आमिष का भोजन करते हैं। आंशिक कल्प की छूट मिलने पर सम्पूर्ण कल्प की तरफ दौड़ते हैं और जीविका के. लिये उपाय द्वारा बहुतेरा धन खींचते हैं । भाव बौद्ध संघ के सम्बन्ध में पुस्सथेर की भविष्य वाणी थेर गाथा के तिंसनिपात में पुरसथेर कहते हैं - वहु आदी नवा लोके, उपञ्जिसंति नागते । सुदेसितं इम्मं धम्मं, किलिसिस्संति दुम्मती ॥ ५४ ॥ * गुण हीनापि संघम्हि, वोहरंति विसारदा । बलवंतो भविस्संति, मुखरा अस्सुताविनो ॥ ५५ ॥ गुणतोऽपि संघहि, प्रहरन्ता यथत्थतो । दुब्बला ते भविस्संति, हिरिमना मनस्थिका ॥१५६॥
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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