SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 528
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बुद्ध और इनके मितुओं की दान प्रशंसा जिस प्रकार ब्रामणों यज्ञ विधियों के प्रसंग में सुवर्ण दक्षिण का और ग्रहण संक्रान्ति में भूम्यादि दानों का महत्त्व बवाया है, उसी प्रकार बौद्ध ग्रन्थकारों ने उनके संघ को आवश्यक पदार्थों का दान देने का महान् फल बताया है। इस सम्बन्ध में सामान्य बौद्ध ग्रन्थकारों की तो बात ही जाने दीजिये बुद्ध. स्वयं किस प्रकार दान की प्रशंसा करते थे, वह निम्नोद्ध त पद्यों से जाना जा सकता हैअजेन च केवलिनं महेसिं, खीणासर्व कुक्कुच्चकपसंतं । अनेन पानेन उपहस्सु, खेचं हितं पुञ्ज पेक्खस्स होति।।२७ ये अन्त दीपा विचरन्ति लोक, अकिंचना सव्य विधिप्पमुत्ता। कालसु तेसु हत्थं पवेच्छे, यो ब्रामण्यो पुञ्जपेक्खोयजेथ ॥१५ (सुत्त निपात) अर्थ-(भगवान बुद्ध कहते हैं ) स्वयं तथा अन्य द्वारा केवली सीमाभव महर्षि की अम पान मस उपचर्या करो, पुण्यार्थी दाता के लिये ऐसा ही दान क्षेत्र होता है। . ___ पदार्थों के प्रकाशन में दीपक समान, त्यागी, सर्व विधि प्रकृपियों से मुकर देखें झानी जो लोक में विचरते हैं उनके लिये पुरणार्थ या करने वाला ब्राह्मण समय पर दान के लिये हाथ लम्बायें।
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy