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________________ ( २ ) जैन सिद्धान्तानुसार मनुष्य का आहार काल परिभाषा "मनुष्य" यह नाम मनुशब्द से बना है, मनु का अपत्य अर्थात् — सन्तान मानव कहलाता है । T जैन सिद्धान्त के अनुसार मानव जाति का ह्रास और विकास होता ही रहता है। जैनदर्शन के अनुसार सृष्टि की उत्पत्ति और विनाश कभी नहीं होता, अमुक काल में प्रत्येक प्राणिजाति की उन्नति और उसके विपरीत काल में हास अवश्य होता है, परन्तु जैनशास्त्र सर्वथा सृष्टि का प्रलय नहीं मानता, न असत् से उत्पत्ति ही मानता है। जैन-मतानुसार पृथ्वी के निश्चित भूभागों में रहने वाले मनुष्यादि मणियों के शरीर आयुष्य आदि भाव सदा समान रहते हैं, तब अमुक क्षेत्रों में उन के शरीर आयुष्य आदि, घटते-बढ़ते रहते हैं । • भारतवर्ष उन क्षेत्रों में से एक है, जिनमें कालचक्र के पलer से प्राणियों के शरीर आयुष्य आदि का मान पलटता है । जैन - परिभाषानुसार वर्तमान समय मसणी सभा है, इसका प्रथमारक सुषमसुषमा, द्वितीय सुषमा, तृतीय सुषमदुष्षमा, चतुर्थ दुरुष सुषमा, पांच दुषमा, और छठा दुष्षम दुधमा नाम के ये छह अक्कई । प्रथमारकाचार कोठा-कोटि कामोपम, दूसरा तीन कोटा कोटि, तीसरां दो कोटा: कोटि ज्ञागशेपम माना गया है, बौया बियालीस (४२) हजार वर्ष व्यून एक कोटा कोटी
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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