SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 507
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ४५७ ) निहित सत्यो लज्जी दयापनो सवपाणभूत-हितानुकम्पी विहरति । अदिन्ना दानं पहाय अदिना दाना पटिविरतो होति, दिनादायी दिनापाटिकखी अथेनेन सुचिभूतेन अत्तना विहरति । अब्रह्मचरियं. पहाय ब्रह्मचारी होति बाराचारी विरतो मेथुना गाम धम्मा मुसा. वादं पहाय मुसावादा पटिविरतो होति, सञ्चवादी सञ्चसन्धोथेतो पञ्चयिको अविसंवादको लोकस्स । पिसुणं वाचं पहाय पिसुणाय वाचाय पटिविरतो होति, इतो सुत्वा न अमुत्र अक्खाता अमुसं भेदाय इति भिन्नानं सन्धाता सहितानं वा अनुप्पदाता समग्गारामो समग्गरतो, समग्गनन्दी, समग्गकरणिं वाचं भासिता होति । फरूसं वाचं पहाय परूसाय वाचाय पटिविरतो होति । या सा वाचा नेला करणसुखा पेमनीया हृदयंगमा पोरी बहुजन कंता बहुजन मनापा तथारूपि वाचं भासिता होति । संफप्पलापं पहाय संफप्पलापा पटिविरतो होति, कालवादी, भूतवादी, अत्थवादी, धन्मवादी, विनयवादी, निधानवादी, निधानवति वाचं भासिता कालेन सापदेशं परियन्तवति अत्थसहितं । (मज्झिमनि० पृ०८८ ) ____ अर्थ-अनगार बन कर भिक्षु नीचे लिखे गुणों से युक्त बनता १. इस प्रकार वह प्रबजित हो, भिक्षुओं की शिक्षा से शिक्षित बनकर प्राणातिपात को छोडकर प्राणातिपात से प्रतिविरत होता है। दण्ड से रहित, शस्त्र से रहित, लज्जावान दयासम्पन्न सर्व प्राणधारी जन्तुओं का हितचिन्तक और दयावान् बनकर विचरता
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy