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________________ ( ४४३ ) का वह आदर करता था । डैण्डेमिस इनमें सबसे बड़ा था और सब उसके शिष्य के समान रहते थे। उसने केवल अपने ही जाने से अस्वीकार नहीं किया किन्तु दूसरों को भी नहीं जाने दिया । कहा जाता है कि उसने यह उत्तर दिया था:- मैं भी ज्युस का बैसा ही पुत्र हैं जैसा कि सिकन्दर है और मैं सिकन्दर का कुछ लेना नहीं चाहता ( क्योंकि मैं वर्त्तमान अवस्था में भली भांति 'हूँ ) क्योंकि मैं देखता हूँ, कि जो लोग सिकन्दर के साथ इतने समुद्र और पृथ्वी में घूमते हैं उन्हें कुछ लाभ नहीं होता और न उसके पर्यटन ही का अन्त होता । इस लिये सिकन्दर जो कुछ दे सकता है उन सबों की मैं इच्छा नहीं करता और न मुझे इस बात का डर है कि मुझे दबा कर वह मेरा कुछ कर सकता है । यदि मैं जीवित रहा तो भारतभूमि ऋतुओं के अनुकूल फल देकर मेरी प्राण रक्षा में समर्थ है और यदि मैं मर गया तो इस दूषित शरीर से मुक्त हो जाऊंगा" उसे स्वतन्त्र प्रकृति का मनुष्य जाम कर सिकन्दर ने बल प्रयोग नहीं किया । यह कहा जाता है कि उसने कलेनस नामक उस स्थान के एक दार्शनिक को अपने निकट रक्खा था किन्तु मेगास्थनीज कहता है कि वह आत्मसंयम एक दम नहीं जानता और दार्शनिक लोग स्वयं कलेनस की बड़ी निन्दा करते हैं, क्योंकि वह उन लोगों के सुख को छोड कर ईश्वर के अतिरिक्त दूसरे प्रभुका सेवन करने चला गया ! * ( मेगास्थनीज भारत विवरण पृ० ८० R इन वर्णनों से सिद्ध होता है कि मौर्य, चन्द्रगुप्त के समय में भारत के पश्चिम छोर तक्षशिला के ब्यास पास ब्राह्मण संन्यासियों
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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