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________________ ( ४३१ ) रहने के लिये विहार बनवा कर भिक्षु संघ को समर्पण कर देते थे । राजगृह में ऐसे अठारह बौद्ध विहार थे, परन्तु बुद्ध के निर्वाण समय में वे सभी जीर्ण शीर्ण अवस्था में पड़े थे । इसका कारण यह ज्ञात होता है कि भगवान् महावीर के राजगृह तथा उसके आस पास के प्रदेश में अधिक विचरने के कारण वहां जैन धर्म तथा जैन श्रमणों का मादर बढ़ गया था । फलस्वरूप अङ्ग, मगध, आदि देशों में बुद्ध कम विचरते थे, उस समय उनके विहार का मुख्य क्षेत्र कौशल प्रदेश बन गया था। वे श्रावस्ती के बाहर अनाथ पिण्डिक उद्यान में रहा करते थे, परन्तु शीत उष्ण ऋतुओं में तो उनकी चरिका होती रहती थी। वत्स, मलय, विदेह, कौशल, काशी आदि देशों में बुद्ध के उपदेश ने पर्याप्त सफलता पायी थी। . बुद्ध का उपदेश सर्वसाधारण के लिये समान होता था। वे मानसिक, वाधिक, कायिक दोषों को दूर करने का उपदेश करते, इन दोषों का दूर करने का कारण ध्यान बताते, देह को दमन न कर आध्यात्मिक शुद्धि करने से ही आत्मा का निर्वाण होता है, धर्म को सभी जातियां समान रूप से ग्रहण कर पालन कर सकती हैं । जन्म से जाति अथवा वर्ण नहीं होता पर कर्म से ही ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्रादि नाम पढ़ते हैं । चाण्डाल भी ब्राह्मणोचित सदाचार पालेगा तो वह ब्राह्मण ही माना जायगा । ब्राह्मण के घर जन्म लेने वाला मनुष्य यदि चाण्डाल के कर्तव्य करेगा तो वह चाण्डाल की कोटि में गिना जायगा । इस प्रकार के उपदेश का परिणाम बौद्ध धर्म के लिये लाभदायक हुआ । कई विद्वान्
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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