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________________ ( ४२२ ) अर्थ — और उसको शस्त्र अग्नि, राजा, जहर आदि से कभी भय नहीं होता । चौर, जल, और न तल्लोकान्प्रपद्यन्ते ये लोका मांस वर्जिनाम् । स दण्डी स च विक्रान्तः स यज्वा सः तपस्यति ॥ २१ ॥ सः सर्व लोकानाप्नोति यो मांसं परिवर्जयेत् । न तस्य दुर्लभं किंचित्तथा लोकद्वये भवेत् ॥ २२ ॥ अर्थ- जो लोक मांस त्यागियों के लिये नियत है । उन्हें मांस भक्षक कभी प्राप्त नहीं कर पाते। जो मांस का परित्यागी है वही संन्यासी, बद्दी पराक्रमी, वही याज्ञिक, वही तपस्वी है और वही सर्व उत्तम लोकों को प्राप्त करता है। उसके लिये इस लोक में तथा परलोक में कोई उत्तम वस्तु दुर्लभ नहीं है। इतना ही नहीं किन्तु मांस भक्षण से निवृत्त होने वाला मनुष्य वरदान देने तथा शाप प्रदान करने में भी समर्थ हो सकता है । विमानमारुह्य शशांक तुल्यं देवांगनाभिः सहितो नृवीरः । सुखानि भुक्त्वा मुचिरं हि नाके लोकानवाप्नोति पितामहस्य | २३ अर्थ-मांस भक्षण से दूर रहने वाला वीर पुरुष चन्द्र तुल्य उज्ज्वल विमान में पहुँच कर देवांगनाओं के साथ दिव्य सुख भोगता है और अन्त में ब्रह्म लोक को प्राप्त करता है । इति श्री विष्णु धर्मोत्तरे तृतीयखण्डे मार्कण्डेय-वज्र-संवादे इंसगीतासु हिंसादोषवर्णनो नामाष्टषष्ट्यधिकद्विशततमोऽध्यायः ॥ ॥ इति परिव्राजकाऽध्यायः ॥
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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