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________________ ( ४१० ) प्रर्थः - हजार ब्रह्मचारियों से, सैकडों वानप्रस्थों से, और करोड़ों ब्राह्मणों से एक यति अधिक है, अर्थात् हजार ब्रह्मचारी सैकडों वानप्रस्थ, और करोड़ों ब्राह्मण एक यति की बराबरी नहीं कर सकते । इस विषय में हारीत कहते हैं: सर्वेषामाश्रमाणां तु संन्यासी त्तमाश्रमी । स एवात्र नमस्यः स्याद् भक्त्या सन्मार्गदर्शिभिः ॥ अर्थ :- सर्व आश्रमों में संन्यासी उत्तमाश्रमी है इसलिये सन्मार्ग में चलने वाले मनुष्यों को भक्तिपूर्वक वही नमस्कार करने योग्य है । इस विषय में जाबाल का मन्तव्य : दुर्वृत े वा सुवृत्त वा यतौ निन्दां न कारयेत् । यतीन् वै दूषमाणस्तु, नरकं याति दारुणम् ।। अर्थः- दुर्वृत्त वा सुवृत्त कैसा भी यति हो उस व्यक्ति को \ देखकर यति आश्रम की निन्दा न करना चाहिए । यति पर दोषारोपण करता हुआ मनुष्य नरक गति को पहुँचाता है । बुद्ध याज्ञवल्क्य कहते हैं: शुष्कमन्नं पृथक् पार्क, यो यतिभ्यः प्रयच्छति । स मूढो नरकं यति, तेन पापेन कर्मणा ॥
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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