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________________ ( ४०६ ) संन्यासी का पादविहार संन्यासी को पैदल विहार करना चाहिए। इसके विपरीत यान वाहन द्वारा भ्रमण करने से प्रायश्चित्त बनना पडता है । इस विषय में वायु पुराण में लिखा है सामध्ये शिविकामश्वं, गजं वृषभमेव च । शकटं वा रथं वाऽपि, समारूड च कामतः ।। व्रतं सान्तपनं कुर्यात, प्राणायामशतान्वितम्। असामर्थे समालय, यानं पूर्वोदितं पुनः।। कृच्छकं शोधनं तत्र, प्राणायामास्त्वकामतः । अर्थ-शक्तिमान होते हुए भी पालकी, घोडा, हाथी, बैल, गाडी, और रथ इन पर इच्छा से चढ कर चले तो सौ प्राणायाम सहित सान्तपन व्रत करे, और अशक्त होने के कारण पूर्वोक्त यान वाहनादि पर इच्छा पूर्वक चढ़े तो एक कृच्छ्र व्रत से प्रायश्चित्त करे और बिना इच्छा के अशक्ति के कारण चढ़ना पडा हो तो सौ प्राणायाम द्वारा शुद्धि करे। संन्यासियों के पतन के कारण बहच परिशिष्ट में संन्यासी के पतन का कारण निम्नलिखित प्रकार से दिया गया है दिवा स्वप्नं च यानं च, स्त्रीकथा लौल्यमेव च । मञ्चकः शुक्लवासश्च, यतीमा पतनानि पट ॥
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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