SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 426
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ३७६ ) मनुकथित यमनियम: अहिंसा सत्यमस्तेयं ब्रह्मचर्यमसंग्रहः । यमास्तु कथितार्थ ते, नियमानपि मे श्रृणु ॥ संतोष - शौच - स्वाध्यायास्तपश्च श्वर-भावना | नियमाः कौरवश्रेष्ठ ! फलसंसिद्धिहेतवः ॥ अर्थ :- अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह ये पांच यम कहे हैं । अब नियमों को सुनो ! सन्तोष, शौच, स्वाध्याय, तप और ईश्वर प्रणिधान - हे कौरव - श्रेष्ठ ! ये पांच नियम फल सिद्धि देने वाले हैं । . अजिह्नः षण्ढकः पङ्ग ु, रन्धो वधिर एव च । मुग्धश्च मुच्यते भिक्षुः, षड्भिरेतैर्न संशयः ॥ अर्थ :- अजिह्न - परदोष भाषण में मूक, नपुंसक - अर्थात् सभी स्त्रियों को माता वा पुत्री तुल्य समझने वाला निर्विकारी, पङ्ग ु - अन्याय अधर्म के रास्ते चलने में पङ्ग, समान, अन्धविषय विकारयुक्त दृष्टि शून्य, बधिर - परापवाद न सुनने वाला, मुग्ध - कौप्रिल्वादि दोष - शून्य भोला भाला इन छः गुणों से भिक्षु कर्मों से मुक्त होता है, इसमें कोई संशय नहीं । चतुर्विध संन्यासी यद्यपि संन्यासाश्राम एक ही है, तथापि आचार भेद से
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy