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________________ ( ३६५ ) संन्यासियों की स्थिति इससे विपरीत थी। उनको किसी की सच्ची समालोचना करने में भय की आशङ्का नहीं थी। यही कारण है कि वे ब्राह्मण तथ उनकी कृतियों पर प्रसङ्ग वश कटाक्ष किया करते थे। सांख्य दर्शन के माठर भाष्य में लेखक ने वेदों तथा ब्राह्मणों की जो धज्जियां उड़ाई हैं, उन्हें देख कर यही कहा जा सकता है कि अति पूर्वकाल में सांख्य संन्यासी वेदों को तथा उनके सर्जक ब्राह्मणों को अच्छी दृष्टि से नहीं देखते थे। इस कारण संन्यासियों तथा ब्राह्मणों के बीच मेल जोल का अभाव ही हो सकता है। _ "ब्राह्मण श्रमणम्" "अहिनकुलम्" आदि द्वन्द्व समास के उदाहरण प्राचीन से प्राचीन व्याकरणकार देते आ रहे हैं । इससे भी वह तो स्पष्ट हो जाता है कि ब्राह्मणों और श्रमणों का आपसी विरोध अति पुराना है। इस दशा में ब्राह्मणों की कृति वेदों में संन्यासियों की चर्चा न होना एक स्वाभाविक बात है। संन्यासी संन्यास लेने का समय संन्यास शब्द का अर्थ है एक तरफ रखना, सांसारिक प्रवृत्तियों तथा गृहस्थ विधेय धार्मिक अनुष्ठानों को एक तरफ रख कर निस्संगता का मार्ग पकड़ना यह संन्यास लेने का अर्थ है। संन्यासवान् होने से संन्यासी, अनियत परिभ्रमण करने वाला होने से परिव्राजक, आत्मचिन्तन में उद्यमवान होने से
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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