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________________ धारण कर सकता है, न कि ब्राह्मणवृत्ति । वैश्य निर्वाह के लिये शूद्र का कर्तव्य कर सकता है न कि ब्राह्मण क्षत्रिय का। वसिष्ठस्मृतिकार कहते हैं"तृणभूम्यग्न्युदकसूनृतानसूयाः सप्त गृहे नोच्छिद्यन्ते कदाचन कदाचनेति" अर्थः-गृहस्थाश्रमी के घर में इन सात बातों का कभी अभाव नहीं होता । वह अपने घर आगन्तुक अतिथि को आसन प्रदान करता है, बैठने को जगह बताता है, पाद्य के लिये जल अर्पण करता है, सूघने के लिये गंधवत्ती सुलगाता है, मधुर वचनों से स्वागत करता है, सचाई से बातें करता है, और किसी प्रकार का ईर्ष्याभाव नहीं रखता है। ब्राह्मण की विशेषता यद्यपि वैदिक धर्म के ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, ये चारों अधिकारी माने गये हैं, फिर भी इन में ब्राह्मण की विशिष्टता है, क्योंकि वह वेदों का अध्यापक और वैदिक धर्म का नियामक प्रमुख स्तम्भ है। वानप्रस्थ तथा सन्यास आश्रम उच्च उच्चतर होने पर भी वेदविहित धर्म में ब्राह्मण का स्थान असाधारण है इसमें कोई शंका नहीं । तृतीय चतुर्थ आश्रमी प्रायः वनों उद्यानों में रहते हुए अपने अधिकार के कार्य बजाते हैं, और चतुर्थाश्रमी सन्न्यासी
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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