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________________ ( ३२८ ) घिरा हुआ हो तो उस स्थिति में मृतक का अंगुष्ठ आदि शस्त्र से चीर दे और उसे स्तम्भ आदि से बांध ले और साधु उसके पास जागते रहें, एक मात्र 6 में लघुनीति भर कर हाथ में रक्खे, यदि मृतक शरीर में किसी क्षुद्र दैवत सत्त्व का प्रवेश होकर अथवा विरोधी देवता के प्रयोग से मृतक उठने लगे तो बायें हाथ से लघु नीति लेकर उस पर छिड़के और बोले 'मत उठ यक्ष ।" "मत उठ यक्ष ।" अगर शरीर प्रविष्ट क्षुद्र सत्त्व डराये, हँसे, अथवा भयङ्कर अट्टहास करे तो भी न डरता हुआ गीतार्थ श्रमण मृतक का विधि पूर्वक व्युत्सर्जन करे । ... दोनिय दिवड्ड खेने, दब्भ-मया पुत्तला उ कायब्बा ! सम खेतम्मि उ एक्को अवडऽभीएण कायब्बो ।।४।। अर्थ-मृतक यदि द्वितीयाद्ध क्षेत्रीय नक्षत्रों में मरा हो तो कुश के दो, तथा समक्षेत्रीय नक्षत्रों में मरा हो एक, दर्भ का पुत्तलक बना कर उसके साथ देना, और अपार्द्ध क्षेत्रीय नक्षत्रों में पुत्तलक करने की आवश्यकता नहीं । नियुक्तिकार ने उत्तरा फाल्गुनी, उत्तराषाढा, उत्तराभाद्रपद, पुनर्वसु, रोहिणी और विशाखा इन छः नक्षत्रों को द्वितीयार्द्ध क्षेत्रीत्र, अश्विनी, कृत्तिका, मृगशिरा, पुष्य, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, अमुराधा, मूल, पूर्वाषाढा, श्रवण, धनिष्ठा, पूर्वाभाद्रपदा और रेषती इन पन्द्रह, नक्षत्रों को समक्षेत्रीत्र, और शतभिषा, भरणी, आर्द्रा अश्लेषा, स्वाती और ज्येष्ठा इन छः नक्षत्रों को
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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