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________________ ( ३२५ ) . श्रमण के मृत देह का व्युत्सर्जन पूर्वकाल में श्रमण बहधा उद्यानों में रहा करते थे, अनशन से, बिमारी से अथवा आशुकार अर्थात् सहसा प्राण निकलने पर मृत श्रमण के शरीर की क्या व्यवस्था की जाती थी, इसका विस्तृत वर्णन आवश्यक सूत्रान्तर्गत "पारिठावणिया निजुत्ति" में दिया गया है । आजकल निजुन्ति में लिखी विधि से मृतक की व्यवस्था नहीं की जाती फिर भी नियुक्ति की मौलिक बातें आज भी वर्ती जाती हैं। जैसे नक्षत्रानुसार पुत्तलक-विधान दिशा आदि । पहले साधु स्वयं व्युत्सर्जन विधि कर के मृतक शरीर को विहित दिशा में ले जाकर छोड़ देते थे । उसका मस्तक गांव की तरफ रक्खा जाता था, परन्तु श्रमणों का बस्तीवास होने के बाद व्युत्सर्जन के विधान में पर्याप्त परिवर्तन होगया है। आज कल प्रमुख साधु अपने स्थान में ही दिग्बन्ध श्रावण पूर्वक मृतक का व्युत्सर्जन कर देता है । वाद में जैन उपासक उसे अरथी अथवा ठठरी में रख कर नगर से बाहर योग्य दिशा में ले जाकर जला देते हैं । यह रीति पहले नहीं थी। यहां हम “पारिठावणिया निज्जुत्ति" के कथनानुसार प्राचीन कालीन व्युत्सर्जन विधि का संक्षेप में दिग्दर्शन करायेंगे। "आसुकार गिलाणे पञ्चक्खायेव प्राणुपुव्वीए । अचित्तसंजयाणं वोच्छामि विहीइ बोसिरणं ॥१॥
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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