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________________ ( ३२२ ) से जो कार्य करने थे, वें मैंने कर लिये हैं अब आगामी भव की साधना में विशेष उद्यम करूँ-वह कहता है। निप्फाइयाय सीसा सउणी जह अंडगं पयत्तणं । । वारस सम्बच्छरियं सो संलेहं अह करेइ ॥२७०॥ अर्थः-मैंने शिष्यों को सर्व प्रकार से तैयार कर दिया है, जैसे चिड़िया यत्नपूर्वक सेकर अंडे को तैयार करती है । अब मुझे संलेखना करना चाहिए यह विचार प्रकट कर के वह बारह वर्ष की संलेखना करता है। .. . संलेखना विधि चत्तारि विचित्ताई विगई निज्जूहियाई चत्तारि । संवच्छरे य दुनिउ एगंतरियं तु आयामं ॥२७१।। नाइ विगिठो उ तवो छम्मासे परिमियं तु आयामं । अन्नेऽवि य छम्मासे होइ बिगिट्ट तवो कम्म।।२७२॥ वासं कोडी सहियं आयामं काउ आणुपुवीए । गिरिकंदरंमि गंतु पायव गमणं अह करेइ ॥२७३।। आचा० सू० विमो० अ० उद्दे० १ पृ० २६३ अर्थः-संलेखना-कारक श्रमण प्रथम चार वर्ष तक अनोखेअनोखे प्रकार के तप करता है, और पारणे में सविकृतिक आहार लेता है । फिर चार साल तक उसी प्रकार विविध तप करता है,
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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