SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 370
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (३२० । दो बार डाले वह दो दत्ति, इसी प्रकार पानी के सम्बन्ध में भी जानना चाहिए। दत्ति में कुछ भी खाद्य पदार्थ जो डाल दिया, भले ही वह दो चार रत्ती भर ही क्यों न हो, उसी को दत्ति मान कर उस दिन उसी पर निर्वाह करना होता है । यही बात पानी के सम्बन्ध में भी समझ लेनी चाहिए। वज्रमध्य चन्द्र प्रतिमा तप कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को पन्द्रह दत्तियां भोजन पानी की लेकर आगे एक एक घटाता हुआ, अमावस्या को एक दत्ति पर पहुंचे । अमावस्या तथा शुक्ल प्रतिपदा को एक एक दत्ति लेकर द्वितीया से पूर्णिमा तक एक एक दत्ति की वृद्धि करता हुआ, पूर्णिमा के दिन पन्द्रह दत्तियां भोजन पानी की ग्रहण करे। - यवमध्या तथा वनमध्या प्रतिमा एक एक मास में पूरी होती .. इन दो तपों को करता हुआ श्रमण अनेक प्रकार के अभिग्रह रखता है । वह दिन रात कायोत्सर्ग में स्थिर रहता है । उस समय के दान उत्पन्न होने वाले देवकृत, मानवकृत, तथा तिर्यक योनिकृत उपसों का समभाव सहन करता से है। ' भिक्षा को निकलते समय-बह अनेक प्रकार के अभिग्रह मन में धारण करता है । जैसे शुद्ध शिलोञ्छ वृत्ति से प्राप्त किया हुआ भोजन पानी अनेक श्रमण ब्राह्मण लाते हैं और भोजन करते
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy