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________________ ( २८४ ) सूत्रों में किया मथा है परन्तु उसका विवेचन करने के लिये यह स्थल उचित नहीं। . आर्य रक्षितजी के बाद धीरे धीरे सूत्रों को लिखने का प्रचार होता गया। पांच प्रकार के पुस्तक ताड पत्रों पर लिखकर अनुयोग धर आचार्य आवश्यकतानुसार अपने पास रखने लगे, फिर भी सूत्रों का पठन-पाठन मौखिक ही होता था। काल-वशात् अनेक महत्त्व-पूर्ण आगम ग्रन्थ विच्छिन्न हो गये फिर भी जो कुछ शास्त्र श्रमणों को कण्ठस्थ रहा था, उसको आर्य स्कन्दिल सूरिजी ने मथुरा में तथा आर्य नागार्जुन वाचक जी ने वलभीपुर में विद्यमान सर्व शास्त्रों को ताड पत्रों पर लिखवा कर सुरक्षित किया, और इन दोनों स्थानों में लिखे गये शास्त्रों का समन्वय बलभी नगरी में विक्रमीय षष्ठी शताब्दी के प्रथम चरण में आचार्य देवद्धिगणी जी की प्रमुखता में किया गया जो आज तक चल रहा है। ... आर्य भद्र बाहु स्वामी के समय श्रुत ज्ञात अखण्डित था, और उसको पढ़कर सम्पूर्णता प्राप्त करने में श्रमण को बीस वर्ष लगते थे। तब वर्तमान जैन श्रुत के पढ़ने में इतना लम्बा समय नहीं लगता क्योंकि सब से विस्तृत अंग सूत्र दृष्टि वाद का अस्तित्व अब नहीं है फिर भी अनेक वर्ष तो लग ही जाते हैं। - कुल गण संघ की व्यवस्था के लिये जैन श्रमण किस प्रकार योग्य अधिकारियों को नियुक्त करते थे, और अपने शिष्यों को किस प्रकार की काल मर्यादा से निर्ग्रन्थ प्रवचन का अध्ययन
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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