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________________ ( १७२ ) उसि बियडे पडिग्राहित्तए, सेsवियणं असित्थे नो चेवणं ससित्थे से बियर परिपूए नो चेवणं श्रपथिए, सेऽवियणं परिमिए सेs वयां बहु सम्पन्न नो चेवणं अबहुः सम्पन्न ||२५|| ( कल्प सूत्रे पृ० ७३ ) अर्थ - वर्षा वास रहे हुए नित्य भोजी भिक्षु के सर्व प्रकार के पानी महस करने कल्पते हैं । वर्षावास स्थित चतुर्थ भक्तिक ( एकान्तर उपवास करने वाले ) भिक्षु को तीन प्रकार के पानी ग्रहण करने कल्पते हैं । वे इस प्रकार उत्स्वेदिम्, संस्वेदिम, तन्दुलोक | वर्षावास स्थित षष्ठ भक्तिक ( दो दो उपवास के बाद भोजन करने वाले ) भिक्षु को तीन प्रकार के पानी लेने कल्पते हैं, वे इस प्रकार - तिलोदक, तुषोदक, अथवा यवोदक । वर्षावास स्थित अष्टम अक्तिक ( तीन तीन उपवास के उपरान्त आहार लेने वाले ) भिक्षु को तीन प्रकार के जल लेने योग्य होते हैं, वे ये आयाम, सौवीर अथवा शुद्ध गरम जल । वर्षावास स्थित विकृष्ट भत्तिक ( तीन से अधिक प्रमाण में उपवास करके भोजन लेने वाले ) भिक्षु को एक उष्ण जल ग्रहण करना योग्य होता है । वह भी सिक्थ (जिसमें अन्न का दाना न गिरा हो ) ससिक्थ न हो । भिक्षु को एक उष्ण जल ग्रहण करने वर्षावास स्थित भक्त प्रत्याख्यान ( अनशन करने वाले ) योग्य होता है, वह भी सिक्थ, सतिस्थ नहीं, वह भी छाना हुआ, वगैर छाना नहीं, वह भी परिमित, अपरिमित नहीं, वह भी पूरा उष्ण किया हुआ, साधारण उष्ण नहीं । १
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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