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________________ ( २६७ ) तहप्पगारं पाणगजायं अहुणाधोयं अणंविलं अब्बुकंतं अपरिणयं अविद्धत्थं अफासुयं जावनो पडिगाहिज्जा अह पुरण एवं जाणिज्जा चिराधोयं अंबिलं ब्बुक्कतं परिणयं विद्धत्थं फासुयं पडिगाहिज्जा । ___ अर्थ-वह भिक्षु वह भिक्षुणी उस पानक जात को जाने । जैसे-उत्स्वेदिम जल ( पिष्ट से खरण्टित वर्तन को साफ करने के लिये गर्म जल डालकर धोये हुए पिष्ट लिप्त वर्तन का धावनः जल ) संस्वेदिम जल ( कोरे पिष्ट के अंश से भरे वतन का । धावन जल ) तन्दुलोदक (चावलों का धावन जल) इनके अतिरिक्त दूसरे भी इसी प्रकार के धावन जलों को जाने, और अधुना धौत तत्काल धोकर निकाला हुआ ) अनम्ल ( जिस में अम्लता नहीं हुई है ) अव्युत्क्रान्त ( जिसके मूल रस गन्धादि में परिवर्तन नहीं हुआ है ) अपरिणत ( जिसको तैयार किये मुहूर्त भर भी समय नहीं हुआ है ) अविध्वस्त ( जिसका सचित्तत्व नष्ट नहीं हुआ है ) अप्रासुक (जो सर्वथा प्राण हीन नहीं बना है ) इस प्रकार के जलों को भिक्षु ग्रहण न करे, अगर यह नाने कि वह चिर धौत है, अम्लता प्राप्त व्युत्क्रान्त, परिणत, विध्वस्त, और प्रासुक है तो उसे ग्रहण करे। २. से भिक्खू वा० से जं पुण पाणगजायं जाणिज्जा, तं जहा तिलोदगं ४ वा, तुसोदग ५ वा, जवोदगं ६ वा, आयाम ७ वा, सौवीरं ८ वा, सुद्धवियडं ६ वा, अन्नपरं वा तहप्पगारं वा पाणगजायं पुवामेव आलोइज्जा आउसोत्ति वा भइणित्ति वा, दाहिसी मे इत्तो अन्नयरं पाणगजायं से एवं वयं तस्स परो वइज्जा-आउ संतो
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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