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________________ ( २६० ) tree दूध, दही, घृत आदि प्रशस्त विकृतियां ग्रहण करने के लिये ग्रह पूर्वक निमन्त्रण करते हों तो प्रशस्त विकृतियों को ग्रहण करे । , साधु को कारण विशेष से शुभ विकृतियां ग्रहण करने की आज्ञा है, परन्तु निन्दित विकृतियां ( मधु मांस मदिरा ) खास कारण से ही ग्रहण की जाय । जो शारीरिक बाह्य रोगों पर औषध के रूप में बरती जाती हों । तब गृहस्थों के आग्रह से भी जो बिकृतियां दूध दही और पान आदि संचयिक हैं, उन्हें ग्रहण करें, परन्तु संचयिक विकृतियों को न लें । घृत तेल मक्खन आदि पथ्य विकृतियां हैं, उनको न लें, क्योंकि उनका क्षय हो जाने पर आवश्यकता के समय इनकी प्राप्ति दुर्लभ हो जायगी, इस कारण से उक्त संयिक विकृतियों को न लेना चाहिए। यदि श्रद्धावान् गृहस्थ उनके लिये बहुत ही आग्रह करें, तो उनको कहना चाहिए कि जब इन विकृति द्रव्यों की आवश्यकता होगी तब इन्हें लेंगे। बाल, ग्लान, (बीमार ) वृद्ध और शैक्ष ( ज्ञानाभ्यासी तथा आचार मार्ग की शिक्षा प्राप्त करने वाला साधु ) आदि के लिये इन विकृतियों की बहुत आव श्यकता होती रहती है, और अभी समय बहुत पड़ा है । उस समय उसे कहे आप चारों महीना इन्हें ग्रहण करेंगे, तब भी ये समाप्त न होंगी, तब विकृतियों की बहुलता और देने बालों 4 का आग्रह जानकर इन द्रव्यों को ग्रहण करें । इस प्रकार संचयिक "विकृतियां भी यतना से ग्रहण की जाती हैं। जिस प्रकार उन
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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