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________________ ( २५३ ) " ( नासिका इन्द्रिय ) के विपयों का निग्रह करना । जिह्नो न्द्रिय ( जीभ ) के विषयों को जीतना ) स्पर्शेन्द्रिय ( त्वगिन्द्रिय ) के विषयों का निग्रह करना । क्रोध का त्याग करना । मान का त्याग करना । कपट का त्याग करना । लोभ का त्याग करना | भाव सत्य ( सच्चे भाव से विधेयानुष्ठान करना ) करण सत्य ( करने कराने अनुमोदन देने में सच्चाई का आश्रय लेना ) योग सत्य ( मानसिक, वाचिक, कायिक, प्रवृत्ति सचाई से करना) क्षमा ( क्रोध को दबाने वाला परिणाम ) विरागता ( वैराग्य ) मनः समाहरणता (मनको अपने काबू में रखना ) वचः समाहरणता( वचन को काबू में रखना) काय समाहरणता ( शरीर को काबू में रखना ) ज्ञान सम्पन्नता ( ज्ञानवान् बनना ) दर्शन सम्पन्नता 2 ( श्रद्धावान् बनना) चारित्र सम्पन्नता ( शुभात्म परिणामवान् बनना ) वेदना ध्यानता ( शारीरिक मानसिक पीड़ाओं को सहन..... करने की क्षमता रखना ) मारणान्तिकाध्यानता ( मरणान्तिक कष्ट को समभाव से सहन करना ) जैन श्रमणों की भिक्षाचर्या पिण्डैषणा जैन श्रमणों की भिक्षाचर्या माधुकरी वृत्ति से होती है। वे भोजन पानी वस्त्र पात्र आदि अपने उपभोग की चीज यदि अपने उद्देश्य से बनाई गई हो तो उसे ग्रहण नहीं करते, मकान तक उनके उद्देश्य से बनाया गया हो तो उसमें वे कभी नहीं ठहरेंगे । निमन्त्रित भोजन अथवा एकान्त का वे स्वीकार नहीं करते ।
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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