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________________ ( २५१ ) श्रोधिक ओपग्रहिक उपधि का लक्षण श्रोहेण जस्स गहणं, भोगो पुण कारणा स ओ होहि । जस्स उ दुगंपि निअमा. कारणो सो उवग्गहिओ ।८३८॥ अर्थः-जिसका ग्रहण सामान्य रूप से होता है, और कारण . आने पर उपभोग होता हैं, उसको अोधोपधि कहते है, और जिन उपकरणों का ग्रहण तथा उपभोग कारण-सद्भाव में होता है, उनका नाम औपग्रहिक है। । दशविध श्रमण धर्म . . समवायाङ्ग सूत्र में श्रमण धर्म के नीचे लिखे अनुसार दश प्रकार बताये हैं। "दस विहे समण धम्मे पन्नत्ते तं जहा-खंत्ती, भुत्ती, अजवे, मद्धवे, लाघवे, सच्चे, संजमे, तवे, चियाए, वंभचेरवासे । “समवायाङ्ग सूत्र' ० ३३ अर्थः-दश प्रकार का श्रमण धर्म कहा है । वह इस प्रकारः तान्ति १, (तमा) मुक्ति २, (निर्लोमता ) आर्जव ३, सरलता मार्दव ४, (कोमलता) लाघव ५, (अकिंचनता) सत्य ६, संयम ७, तप, त्याग है, ब्रह्मचर्य १० । प्रत्येक जैन श्रमणको जीवन पर्यन्त उपयुक्त दशविध प्रमण धर्म का पालन करना होता है। इसके उपरान्त श्रमण को निम्न लिखित सत्ताईस गुण प्राप्त करने होते हैं ।
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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