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________________ ( २२१ ) और यह पिण्डपात ( भिक्षान) आमिष का ही एक प्रकार है । इसलिये मैं इस भिक्षान को न खाकर क्षुधा के दौर्बल्य से दिन-रात पूरा करूँगा। इस प्रकार उस भिक्षु ने उस भिक्षाम को न खाकर क्षुधा दौर्बल्य को सहन करते हुए दिन-रात्रि व्यतीत की । अब दूसरे भिक्षु के मन में ऐसा विचार आया, भगवान् भोजन कर चुके हैं, और यह शेष भिक्षान्न अहरित भूमि में फेंकवा देंगे अथवा प्राण रहित जल में घुलवा देंगे। इस वास्ते मैं इस पिण्डपात को खाकर क्षुधा दौर्बल्य दूर कर रात्रि को सुख से व्यतीत करूँ। यह सोचकर द्वितीय भिक्षु ने उस पिण्डपात को खा लिया और क्षुधा दौर्वल्य को दूर कर रात दिन बिताया। हे भिक्षुओ! जिस भितु ने यह पिण्डपात खाकर क्षुधा दौर्बल्य को दूर कर के रात्रि दिन बिताया उससे मेरी दृष्टि में पहला भिक्षु विशेष पूज्य और विशेष प्रशंसनीय है । वह इसलिये कि हे भिक्षुओ ! यह लम्बी रात उस भितु ने सन्तोष से बितायी वह उत्तम अध्यवसाय, शुभ ध्यान-तत्परता और आत्मीय वीर्योल्लास से वर्तेगा। इस वास्ते कहना है, हे भिक्षुओ तुम मेरे धर्म के दायाद बनो, आमिष के नहीं। उक्त उद्धरण में आये हुए "आमिसञ्जतरं खो पनेतं यदिदं पिण्डपातो" इन शब्दों से यह निश्चित है कि बुद्ध के बामिष शब्द के हो अर्थ होते थे। एक तो. प्राण्या भूत, मांस और दूसरा प्रणीत भोजन । भिक्षुओं को वे आमिष दायाद न बनने की बार बार, शिक्षा देते हैं। इस कारण यही हो सकता है कि बुद्ध के
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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