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________________ ( १७७ ) सौवीर जल संग्रहणी, अर्श और कफ का नाश करने वाला, बन्द कोष्ठ को हटाने वाला और उदरामि दीपक है, उदावतअङ्गमर्द, अस्थिशूल, आनाह- अफरा के रोगियों के लिये विशेष प्रशंसनीय है । ऊपर के वर्णन में सौवीर, यवोदक आदि के उपादान बताने गये हैं, परन्तु उसकी निर्माण विधि काञ्जिक निर्माण विधि के सदृश होने से पृथक् नहीं लिखी कई, सभी अम्ल जलों के निर्माण का प्रकार एकसा होता है, मात्र उपादानों के भेद से भिन्न-भिन्न नाम धारण करते हैं । अम्ल जलों के निर्माण का प्रकार नीचे लिखे अनुसार मिलता है । नूतनं मृणमयं कुम्भं, कटुतैलेन लेपयेत् । निर्मलं च जलं तस्मिन् राजिकाजाजिसैंधवम् ।। हिंगु विश्वा निशा चैव, औदनं वंशपल्लवः । चोदनस्य कुलित्थानां, जलं वटकखाण्डवम् ॥ सर्व तस्मिन्निधायाऽथ, मुद्रां दत्वा दिनत्रयम् । रक्षयित्वा ततो वस्त्रे, गालितं काञ्जिकं मतम् || ( शालिग्राम निघण्टुभूषण ) अर्थ--मिट्टी का कोरा घड़ा लेकर उसमें सरसों का तेल नीमइना फिर उसमें निर्मल ठंडा जल भर के राई, श्वेत जीरा, सैम्धामक, हिंगु, सोंठ, हल्दी, बागल, बांस के हरे पत्ते, भात गौर कुलत्थ का अवस्रावरण जल, वटक खाडल ये सब उस घड़े में
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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