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________________ ( १७३ ) भगवान का आदेश पाकर सिंह बहुत ही सन्तु दुआ और भगवान को वन्दन करके अपने स्थानमा और मुखरित्रका तथा पात्र की प्रतिलेखवा कर गौतम स्वामी की तरह फिर भमवान्, के पास जा उनको वन्दन कर आशा ले कर में ढिय मास की तरफ चला । में ढिय ग्राम के मध्य में होकर रेवती के घर की तरफ गया। जब सिंह ने रेवती के घर द्वार में प्रवेश किया तो वह अपने आसन से उठी और साथ ही आठ कदम सामने जाकर विधि पूर्वक मुनि को चन्दन किया और बोली कहिए महाभाग ! किस कारण से पधारे ? रेवती का प्रश्न सुनकर अमगार सिंह बोले गाथापतिनि ! तुमने भगवान महावीर के लिये दो कूष्माण्ड फल-घृत-पक्व कर तैयार किये हैं उनकी तो आवश्यकता नहीं है, परन्तु अगस्त्य फली का मावा तथा सुनिषण्णक ( कुक्कुट ) वनस्पति के धन के योग से तैयार किया हुआ पाक जो तुम्हारे घर में पहले से विद्यमान है, उसकी आवश्यकता है। सिंह की बात सुनकर रेपची बोली, हे सिंह ! ऐसा तुमको कौन ज्ञानी और तपस्वी मिला जिससे मेरी रहस्य भरी बातें तुमने जान कर कह दी । इस पर सिंह ने कहा, मैं ... भगवान् महावीर के कहने से इन बातों को जानता हूँ। यह सुन कर रेवती बहुत हर्षित हुई और रसोई घर में जाकर सिंह का पात्र नीचे रखवाया और अन्दर से वह खाद्य पाक लाकर सब पात्र में डाल दिया, रेवती ने इस शुद्ध द्रव्य का शुभ भाव से दान देकर देव गति का आयुर्वन्ध किया । । बाद में सिंह रेवती के घर से निकल मेंदिय गाम के बीच में
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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