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________________ ( १७१ ) बासियों की परिषद मिली। भगवान् ने धर्मोपदेश दिया और परिषद् अपने अपने स्थान की तरफ लौटी । उस समय श्रमण भगवान् महावीर के शरीर में बडा कष्टकर रोग उत्पन्न हुआ था, जो तीव्र और असह्य हो गया था । उनका शरीर पित्त-ज्वर से व्याप्त था और सारे शरीर में जलन हो रही थी । यही नहीं किन्तु उनको रक्तातिसार तक हो गया था, बार बार खून के दस्त लगते थे, भगवान् की इस बीमारी को देख कर चारों वर्ण के लोग कहते थे ( छः महीने पहले श्रावस्ती के उद्यान में ) मक्खलि गोशालक ने भगवान् पर जो अपनी तेजोलेश्या छोडी थी, उससे व्याप्त होकर महावीर का शरीर पित्तज्वर से व्याप्त और दाह से आक्रान्त हो गया है, क्या ? यह छ: महीने के भीतर छद्मस्थ ही काल करेंगे ? उस समय में श्रमण भगवान् महावीर के शिष्य अनगार सिंह मालुका कच्छ से कुछ दूर निरन्तर दो दो उपवास करते हुए हाथ ऊँचे और दृष्टि सूर्य के सम्मुख रख कर आतापना कर रहे थे, तब ध्यान में लीन सिंह अनगार के कानों में महावीर के रोग से उनके मृत्यु की सम्भावना करने वाली रास्ते चलते लोगों की बातें पड़ी, उनका ध्यान विचलित हो गया वे लोगों की बातों का पुनरुच्चारण करते हुए ध्यान भूमि से नीचे उतर कर मालुका कच्छ के निम्न सघन प्रदेश में पहुंचे और अपने धर्माचार्य के अनिष्ट की चिन्ता से वे जोरों से रो पड़े । भगवान् महावीर ने अपने शिष्यों को सम्बोधन करते हुए कहा आर्यों! मेरा शिष्य सिंह अनगार लोगों की बातें सुन कर मेरे
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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