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________________ ( १४० ) शिष्य, और निकटवर्ती आज्ञाकारी मनुष्य के अर्थ में प्रयुक्त होते हैं। :: मधु शब्द का अर्थ आजकल लेखक शहद मात्र करते हैं। परन्तु यह कितने अर्थों का प्रतिपादक है, यह तो निम्नलिखित कोश वाक्यों से ही जाना जा सकता है । मधुश्च वर्नु दैत्येषु, जीवाशाक मधूकयोः। मधु क्षीरे जले मद्ये, क्षौद्रे पुष्परसेऽपि च ॥ "अनेकार्थ संग्रह" अर्थः-मधु शब्द 'चैत्र मास, बसन्त ऋतु, दैत्य विशेष, जीवाशाक, महुआ, दूध, पानी, मदिरा, शहद, मकरन्द. इन अर्थों का वाचक है। ... पेशी शब्द आजकल के लेखकों के विचार से मांस वल्ली अथवा मांस के टुकड़ों के अर्थ में ही प्रचलित है । परन्तु वास्तव में पेशी कितने अर्थों को बताती है, यह नीचे लिखे कोश-वाक्य से ज्ञात होगा । जैसे: पेशी मांस्यसिकोशयोः । मण्डभेदे पलपिण्डे सुपक-कणिकेऽपि च । "अनेकार्थ संग्रह" ___ अर्थः-पेशी, तलवार का म्यान, पकान का भेद मांस के पिण्ड, घृत पक्ककणिका, इतने पदार्थों का नाम है। -
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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