SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 188
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १३८ ) यह बात कफ को दूर करने वाला, तथा रुचिकर होता है । इसमें से अस्थि निकाल कर प्रयोग करने से विशेष लाभदायक होता है। ____ आज कल “पलल" यह मांस का नाम माना जाता है । परन्तु मूल में पलल नाम खड़े हुए तिल चूर्ण का था। ऊखली में तिलों को कूट कर सूक्ष्म कर देते हैं, फिर उसमें गरम पानी छिड़क कर खांड मिलाते हैं । इससे स्नेह प्रचुर तिल चूर्ण बनता है। जिसे मारवाड में 'सेली' कहते हैं। ___ यह पदार्थ मकर संक्रान्ति के दिन अधिक बनाया जाता है । पूर्व काल में इसे पलल कहते थे। स्नेहाक्त होने के कारण पिछले लोगों ने मांस को भी पलल मान लिया और कोशकारों ने इस. शब्द को अनेकार्थक मान कर अपने कोशों में दाखिल कर दिया। पललं तिलचूर्णे स्यान्मांसकर्दम-भेदयोः । (वैजयन्ती) अर्थ-पलल यह तिल चूर्ण का नाम है, और मांस तथा कीचड के भेद में भी यह व्यवहृत हाता है। पललं तु समाख्यातं, सैक्षवं तिलपिष्टकम् । पललं मलकृद् वृष्यं, वातघ्नं कफपित्तकृत् ।। वृंहणं च गुरु स्निग्धं, मूत्राधिक्य-निवर्चकम् । .(भाव प्रकाश)
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy