SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 183
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १३३ ) अङ्ग प्रत्यङ्गों में से मेदस सदृश स्त्राव निकलता है, उसे वनस्पति का मेदो धातु माना जाता था। प्राणधारियों के शरीर में रहने वाले कठोर दार-माम को. अस्थि कहते थे, तथा वनस्पति के फलों में रही हुई गुठलियाँ तथा बीजों को भी अस्थिक के नाम से पहिचाना जाता था | प्राणधारियों के अस्थियों में होने वाले स्निग्ध पदार्थ को मजा धातु कहते हैं, वैसे फलों की गुठलियों में तथा बीजों में से निकलने वाले स्निग्ध पदार्थ को वृक्ष की मजा कहते हैं । प्राणधारियों के १. कण्टाफलमपक्कं तु कषायं स्वादशीतलम्। कफपित्तहरं चैव, तत्फलास्थ्यर्षि तद्गुणम् ।।१०।। रा०व०नि० अर्थ-कच्चा कटहल, कषाय रस वाला, स्वादिष्ट और शीतवीर्य होता है, कफ, पित्त, का नाशक है, इसके फल का अस्थिः ( मुठली-) भी फल के जैसा गुरगवान होता है। . "अस्थि बीजानां शकृदालेपः शाखिनां गर्तदाहो गोऽस्थि शकृद्भिः काले दोहदं च ।" . _ अर्थ शा० पृ० ११७ । अर्थ-अस्थि और बोज वाले वृक्षों के बीजों को गोबर का लेप करके बीना चाहिए। ' २, वातावमज्जा मधुरा वृष्यातिकाऽमिलापड़ा। . स्निग्धोष्णा कफलष्टा, रक्तपित्त-विकारिणाम् ॥१२५।। 'भाव प्रकाश निघण्टु । अर्थ-बाद्यम की मज्जा ( गिरी) मीठी, पुष्टिकारक, पित्त वात का नाश करने वाली, स्निग्ध, उष्णवीर्य, और कफ करने वाली होती है, इसका सेवन रक्त पित्त के रोगियों को हितकारी नहीं है।
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy