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________________ (.१२८ ) अमरसिंह और वैजयन्तीकार तथा हेमचन्द्राचार्य के बीच लगभम छः सात सौ वर्ष का अन्तर है। अमर के छः नामों में वृद्धि होते होते वैजयन्ती में बारह और हेमचन्द्र के समय में मांस के तेरह नाम बन गये थे। इसका तात्पर्य यह हुआ कि प्रतिशत वर्ष में मांस के नामों में एक एक की वृद्धि हुई। . हेमचन्द्र के बाद के कल्पनु म कोश में नामों की अधिक वृद्धि दृष्टिगोचर होती है, जो कि उक्त कोश हेमचन्द्र से अधिक परवर्ती 'नहीं था । परन्तु जिस देश में इस कोश का निर्माण हुआ उस देश में मांस भक्षण का अधिक प्रचार होने से नाम अधिक प्रचलित हो गये थे। कल्पद्र म में मांस के नाम निम्नलिखित उपलब्ध होते हैं मांस, पिशित, क्रव्य, आमिष, पलल, जंगल, कीर, लेपन, मारद, पल, तरस, जांगल, घस, वसिष्ठ, रक्ततेजोज, कीन और मेदस्कृत् । अमर कोशोक्त छः नामों में नीचे लिखे छः नामों की वृद्धि होकर वैजयन्ती के वारह नाम बने हैं। जो ये हैं काश्यप, पल, रक्ततेज, रक्तमव, कीन, मेदस्कृत। ये छः ही नाम योगिक हैं । काश्यप यह नाम कश्यप शब्द से गढ़ा गया है । कश्यप का अर्थ है मदिरा पान करने वाला मनुष्य, और कश्यप का खाद्य काश्यप । पल यह नाम उम्मान वाचक शब्द है, जब मांस खाने वालों ने उक्त उन्मान से तोल कर लेने देने के कारण इस पदार्थ का नाम भी पल बना दिया, और बाद के
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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