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________________ ( १२६ ) लवते तव्यतेऽस्माद् वा । "क्लव भये" न्यन्तो मित् "अचो यत् ' ( ३३११९७ ) रलयोरेकस्वम् । क्लव धातु भयार्थक है इससे यत्प्रत्यय लगाने और र ल का एकत्व मानने से क्रव्य शब्द बनता है। क्षीर स्वामी गत्यर्थक क्रुङ् धातु को यत्प्रत्यय लगाकर क्रव्य शब्द बनाते हैं। आमिषति 'मिष स्पर्धायाम्' (तु०प० से०) मेषति पा "मिषु सेचने" ( भ्वा०प० से.) "इगुपध" ( ३।१।३३५ ) इति कः । मिष स्पर्धार्थक और मिषु सेचनार्थक धातु है इनसे क प्रत्यय लगने से मिष शब्द बनता है, और आङ् उपसर्ग पूर्व में आने से आमिष शब्द बनता है। इन छः नामों में से पिशित का अवयववान्, तरस का बलवान् मांस का मानकारक, पलल का गमन कारक, क्रव्य का भय कारक अथवा गतिकारक, और आमिष का किश्चित् स्पर्धा कारक, अथवा सेचन ऐसा अर्थ होता है। __इन नामों में से एक भी नाम ऐसा नहीं है, कि जिसका अर्थ भोजन अथवा भक्षण ऐसा होता हो। इस से प्रतीत होता है कि अमरसिंह के समय में मांस भक्षण का प्रचार हो जाने पर भी कोशकार ने इन नामों का प्राणियों के तृतीय धातु के अर्थ में ही प्रयोग किया है।
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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